Wednesday, August 24, 2016

New List India National Days

January 9 -NRI Day
January 12 -Youth Day
January 15 -Army Day
January 24 -National Girl Child Day
January 25 -National Tourism Day, National Voters Day
January 26 -Indian Republic Day
January 30 -Martyr's Day
February 1 -National Costal Area Protection Day
February 19 -Panchayati Raj Day
February 24 -Central Excise Day
February 28 -Science Day
March 4  -National Safety Day
March 18  -Ordnace Factory Day
April 5  -National Maritime Day
April 14  -Dr. B. R. Ambedkar's Birthday
May 1  -Labour Day
May 11  -Technical Education Day, National Technology Day
May 21  -Anti Terrorism Day
May 29  -Everest Day
June 29  -Statistics Day
July 26  -Kargil Victory Day
August 9  -Quit India Day
August 15   -Independence Day
August 20         -Sadbhavana Day
August 29         -Sports Day
September 5 -Teachers Day
September 14 -Hindi Day
September 15 -Engineers Day
October 2         -Gandhi Jayanti
October 8         -Airforce Day
October 10 -Postal Day
October 13 -Filately Day
October 31 -National Integration Day
November 9 -Law Day
November 11 -Education Day
November 14 -Childrens Day
November 19 -Citizen Day
November 24 -NCC Day
December 2 -National Pollution Control Day
December 4 -Indian Navy Day
December 7 -Armed Forces Flag Day
December 18 -Minority Rights Day
December 23 -Farmers Day
December 24 -Consumer Day

Tuesday, August 23, 2016

              ||  सुभाषित ||

"अश्वम नैव गजं नैव व्याघ्रं नैवच नैवच
अजा पुत्रं बलिं दद्यात देव दुर्वल घातक" ।।


[लोग घोड़ा,हाथी को बलि नहीं चढाते बाघ को तो कदापि नहीं, लेकिन बकरी को बलि चढ़ा देते हैं क्यूंकि दुर्वल को सब कोई सताते हैं ।। जैसे नपुंसक की जुवान से संयमता की बातें शोभा नहीं देता, जैसे दुर्वल व्यक्ति की जुवान से अहिंसा की बातें शोभा नहीं देता ]


इसीलिए कहा जाता है कि बलवान बनो सामर्थ्यवान बनो...


वन्दे मातरम... भारत माता की जय..
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देश के प्रति निष्ठा सभी निष्ठाओं से पहले आती है और यह पूर्ण निष्ठा है
क्योंकि इसमें कोई प्रतीक्षा नहीं कर सकता कि बदले में उसे क्या मिलता है।
~ Lal Bahadur Shastri

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राजपत्नी गुरो: पत्नी, मित्र पत्नी तथैव च,
पत्नी माता स्वमाता च, पंचैता मातरः स्मृता:।

अर्थ :- राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, अपनी पत्नी की माता और अपनी माता,--
यह पांच माताएं शास्त्रों में कही गयी हैं। अर्थात इन्हें मातृवत ही देखना चाहिए।
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सुभाषित
अमंत्रं अक्षरं नास्ति, नास्ति मूलं अनौषधं।
अयोग्यः पुरुषः नास्ति, योजकः तत्र दुर्लभ:॥- शुक्राचार्य (शुक्र नीति)
अर्थात कोई अक्षर ऐसा नहीं है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरू होता हो, कोई ऐसा मूल (जड़) नहीं है, जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी आदमी अयोग्य नहीं होता, उसको काम में लेने वाले (मैनेजर) ही दुर्लभ हैं।

कदम निरंतर चलते जिनके, श्रम जिनका अविराम है।
विजय सुनिश्चित होती उनकी, घोषित यह परिणाम है।।


"श्रूयतां धर्मसर्वस्वं, श्रुत्वा चैवावाधार्यताम...
आत्मनः प्रतिकूलानि परेशां न समाचरेत .."

धर्म का सार सुनिये और सुनकर धारण कीजिये। वह यह कि, जो आचरण स्वयं के प्रतिकूल हो वैसा आचरण दूसरों के साथ नहीं करना चाहिये।

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अन्न ग्रहण करने से पहले
विचार मन मे करना है
किस हेतु से इस शरीर का
पालन पोषण करना है

हे परमेश्वर एक प्रार्थना
नित्य तुम्हारे चरणो में
लग जाये तन मन धन मेरा
मातृभूमि की सेवा में ॥

जय श्री राम

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सुप्रभातम्।
प्रियवाक्यम् प्रदानेन, सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मातदेव वक्तव्यं, वचने का दरिद्रता।

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उद्यमेनैव हि सिध्यन्ति,
कार्याणि न मनोरथै।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य,
प्रविशन्ति मृगाः॥

प्रयत्न करने से ही कार्य पूर्ण होते हैं, केवल इच्छा करने से नहीं, सोते हुए शेर के मुख में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करते हैं।

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कोयल का सो देत है, कागा का सो लेत।
तुलसी मीठे बचन ते , जग अपना कर लेत।

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कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्‌  ।
इन्द्रियार्थान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते।।

जो मूढ़ बुद्धि मनुष्य समस्त इन्द्रियों को हठपूर्वक ऊपर से रोककर मन से उन इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन करता रहता है, वह मिथ्याचारी अर्थात दम्भी कहा जाता है

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शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे
साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न वने वने हितोपदेश

हर एक पर्वत पर माणिक नहीं होते, हर एक हाथी में गंडस्थल में मोती नहीं होते साधु सर्वत्र नहीं होतेहोते , हर एक वनमें चंदन नहीं होता । उसी प्रकार दुनिया में भली चीजें प्रचुर मात्रा में सभी जगह नहीं मिलती ।

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बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः |
श्रुतवानपि मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो जनः ||

अर्थात् : जो व्यक्ति धर्म ( कर्तव्य ) से विमुख होता है वह ( व्यक्ति ) बलवान् हो कर भी असमर्थ, धनवान् हो कर भी निर्धन तथा ज्ञानी हो कर भी मूर्ख होता है |

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हिन्दव: सोदराः सर्वे,
न हिन्दू: पतितो भवेत् ।
मम दीक्षा हिन्दू रक्षा,
मम मंत्र समानता ।।

भावार्थ
सब हिन्दू भाई हैं कोई भी हिन्दू पतित नही है
हिंदुओं की रक्षा मेरी दीक्षा है समानता ही मेरा मन्त्र है।

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( अर्जुन उवाच )

चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् |
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ||

अर्थात् : ( अर्जुन ने श्री हरि से पूछा ) हे कृष्ण ! यह मन चंचल और प्रमथन स्वभाव का तथा बलवान् और दृढ़ है ; उसका निग्रह ( वश में करना ) मैं वायु के समान अति दुष्कर मानता हूँ |

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(श्री भगवानुवाच )

असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् |
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्येते ||

अर्थात् : ( श्री भगवान् बोले ) हे महाबाहो ! निःसंदेह मन चंचल और कठिनता से वश में होने वाला है लेकिन हे कुंतीपुत्र ! उसे अभ्यास और वैराग्य से वश में किया जा सकता है |

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एकवर्णं यथा दुग्धं भिन्नवर्णासु धेनुषु ।
तथैव धर्मवैचित्र्यं तत्त्वमेकं परं स्मॄतम् ॥


जिस प्रकार विविध रंग रूप की गायें एक ही रंग का (सफेद) दूध देती है, उसी प्रकार विविध धर्मपंथ एक ही तत्त्व की सीख देते है

सर्वं परवशं दु:खं सर्वम् आत्मवशं सुखम् ।
एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदु:खयो: ॥

जो चीजें अपने अधिकार में नही है वह सब दु:ख है तथा जो चीज अपने अधिकार में है वह सब सुख है ।
संक्षेप में सुख और दु:ख के यह लक्षण है ।

अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् ।
अधनस्य कुतो मित्रम् अमित्रस्य कुतो सुखम् ॥

आलसी मनुष्य को ज्ञान कैसे प्राप्त होगा ? य्दि ज्ञान नही तो धन नही मिलेगा ।
यदि धन नही है तो अपना मित्र कौन बनेगा ? और मित्र नही तो सुख का अनुभव कैसे मिलेगा ऋ

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तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ||

अर्थ : गोस्वामीजी कहते हैं कि सुंदर वेष देखकर न केवल मूर्ख अपितु चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाते हैं |सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान है लेकिन आहार साँप का है |

Thursday, August 11, 2016

श्रीकृष्ण भगवान द्वारका में रानी सत्यभामा के साथ
सिंहासन पर विराजमान थे,
निकट ही गरुड़ और सुदर्शन चक्र भी बैठे हुए थे।
तीनों के चेहरे पर दिव्य तेज झलक रहा था।
बातों ही बातों में रानी सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से पूछा कि,
"हे प्रभु, आपने त्रेता युग में राम के रूप में अवतार लिया था, सीता आपकी पत्नी थीं। क्या वे मुझसे भी ज्यादा सुंदर थीं?"
द्वारकाधीश समझ गए कि सत्यभामा को अपने रूप का अभिमान हो गया है।
तभी गरुड़ ने कहा कि, "भगवान! क्या दुनिया में मुझसे भी ज्यादा तेज गति से कोई उड़ सकता है?
इधर सुदर्शन चक्र से भी रहा नहीं गया और वह भी कह उठे कि,
"भगवान! मैंने बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है। क्या संसार में मुझसे भी शक्तिशाली कोई है?"
भगवान मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। वे जान रहे थे कि उनके इन तीनों भक्तों को, 'अहंकार', हो गया है और इनका अहंकार नष्ट होने का समय आ गया है।
ऐसा सोचकर उन्होंने गरुड़ से कहा कि,
"हे गरुड़! तुम हनुमान के पास जाओ और कहना कि भगवान राम, माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।"
गरुड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमान को लाने चले गए।
इधर श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि,
"देवी! आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं"
और स्वयं द्वारकाधीश ने राम का रूप धारण कर लिया।
मधुसूदन ने सुदर्शन चक्र को आज्ञा देते हुए कहा कि,
"तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो। और ध्यान रहे कि मेरी आज्ञा के बिना महल में कोई प्रवेश न करे।"
भगवान की आज्ञा पाकर चक्र महल के प्रवेश द्वार पर तैनात हो गए।
गरुड़ ने हनुमान के पास पहुंच कर कहा कि,
"हे वानरश्रेष्ठ! भगवान राम माता सीता के साथ द्वारका में आपसे मिलने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं। आप मेरे साथ चलें। मैं आपको अपनी पीठ पर बैठाकर शीघ्र ही वहां ले जाऊंगा।"
हनुमान ने विनयपूर्वक गरुड़ से कहा,
"आप चलिए, मैं आता हूं।"
गरुड़ ने सोचा, "पता नहीं यह बूढ़ा वानर कब पहुंचेगा। खैर मैं भगवान के पास चलता हूं।" यह सोचकर गरुड़ शीघ्रता से द्वारका की ओर उड़े।
पर यह क्या, महल में पहुंचकर गरुड़ देखते हैं कि हनुमान तो उनसे पहले ही महल में प्रभु के सामने बैठे हैं। गरुड़ का सिर लज्जा से झुक गया।
तभी श्रीराम ने हनुमान से कहा कि,
"पवन पुत्र! तुम बिना आज्ञा के महल में कैसे प्रवेश कर गए? क्या तुम्हें किसी ने प्रवेश द्वार पर रोका नहीं?"
हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए सिर झुका कर अपने मुंह से सुदर्शन चक्र को निकाल कर प्रभु के सामने रख दिया।
हनुमान ने कहा कि,
"प्रभु! आपसे मिलने से मुझे इस चक्र ने रोका था, इसलिए इसे मुंह में रख मैं आपसे मिलने आ गया। मुझे क्षमा करें।"
भगवान मंद-मंद मुस्कुराने लगे।
हनुमान ने हाथ जोड़ते हुए श्रीराम से प्रश्न किया,
"हे प्रभु! आज आपने माता सीता के स्थान पर
किस दासी को इतना सम्मान दे दिया
कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान है।"
अब रानी सत्यभामा के अहंकार भंग होने की बारी थी।
उन्हें सुंदरता का अहंकार था, जो पलभर में चूर हो गया था।
रानी सत्यभामा,
सुदर्शन चक्र व
गरुड़,
तीनों का गर्व चूर-चूर हो गया था।
वे भगवान की लीला समझ रहे थे।
तीनों की आंख से आंसू बहने लगे
और वे भगवान के चरणों में झुक गए।