Saturday, April 25, 2020

सिय राम मय सब जग जानी करहु प्रणाम जोरी जुग पानी ।।

अर्थात –
पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए।

मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी।।

दीन दयाल बिरिदु संभारी, हरहु नाथ मम संकट भारी।।

सीता राम चरण रति मोरे । अनु दिन बढ़उ अनुग्रह तोरे॥

सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥1॥

अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँति। सब तजि भजनु करौं दिन राती॥

मंगल मूर्ति मारुति नंदन सकल अमंगल मूल निकंदन॥

बिनु सत्संग विवेक न होई। रामकृपा बिनु सुलभ न सोई।।

होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा। तब रघुनाथ चरन अनुरागा॥

उमा कहऊँ मैं अनुभव अपना, सत हरि भजन जगत सब सपना॥

हरि व्यापक सर्वत्र समाना । प्रेम ते प्रकट होहिं मैं जाना।

बंदउ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।

देह धरे कर यह फलु भाई। भजिअ राम सब काम बिहाई।।

मन कर्म वचन छाडि चतुराई, भजत कृपा करि हहिं रघुराई॥

परहित सरिस धर्म नहिं भाई।पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ।।

जहाँ सुमति तहाँ सम्पति नाना; जहाँ कुमति तहाँ बिपति निदाना॥

कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ। मति अनुरूप राम गुन गावउँ॥

कवित विवेक एक नहिं मोरे। सत्य कहउँ लिखि कागद कोरे।।

जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं। तीरथ सकल जहाँ चलि आवहिं॥

बरषहिं राम सुजस बर बारी। मधुर मनोहर मंगलकारी ॥

जय जय राम सिया राम, जय जय राम सिया राम
जय जय राम सिया राम, जय जय राम सिया राम
जय जय राम सिया राम, जय जय राम सिया राम
जय जय राम सिया राम, जय जय राम सिया राम
जय जय राम सिया राम, जय जय राम सिया राम
जय जय राम सिया राम, जय जय राम सिया राम
जय जय राम सिया राम, जय जय राम सिया राम
जय जय राम सिया राम. जय जय राम सिया राम


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ॐ जाम्दग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि।
तन्नो परशुरामः प्रचोदयात्।।
ॐ रां रां ॐ रां रां ।
ॐ पशुहस्ताय नमः इति मूलमन्त्रः।।

‘भगवान परशुराम जयंती’ के शुभ पर्व पर आप सभी को शुभकामनाएँ

#परशुराम_जयंती

मैं परशुराम बोल रहा हूँ...
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रात्रि कहांनी। ❣️❣️❣️❣️

*🟠👉🏿अंहकार की सजा➖*


एक बहुत ही घना जंगल था। उस जंगल में एक आम और एक पीपल का भी पेड़ था। एक बार मधुमक्‍खी का झुण्‍ड उस जंगल में रहने आया, लेकिन उन मधुमक्‍खी के झुण्‍ड को रहने के लिए एक घना पेड़ चाहिए था।
रानी मधुमक्‍खी की नजर एक पीपल के पेड़ पर पड़ी तो रानी मधुमक्‍खी ने पीपल के पेड़ से कहा, हे पीपल भाई, क्‍या में आपके इस घने पेड़ की एक शाखा पर अपने परिवार का छत्‍ता बना लु?

पीपल को कोई परेशान करे यह पीपल को पसंद नही था। अंहकार के कारण पीपल ने रानी मधुमक्‍खी से गुस्‍से में कहा, हटो यहाँ से, जाकर कहीं और अपना छत्‍ता बनालो। मुझे परेशान मत करो।

पीपल की बात सुन कर पास ही खडे आम के पेड़ ने कहा, पीपल भाई बना लेने दो छत्‍ता। ये तुम्‍हारी शाखाओं में सुरक्षित रहेंगी।

पीपल ने आम से कहा, तुम अपना काम करो, इतनी ही चिन्‍ता है तो तुम ही अपनी शाखा पर छत्‍ता बनाने के लिए क्‍यों नही कह देते?

इस बात से आम के पेड़ ने मधुमक्‍खी रानी से कहा, हे रानी मक्‍खी, अगर तुम चाहो तो तुम मेरी शाखा पर अपना छत्‍ता बना लो।

इस पर रानी मधुमक्‍खी ने आम के पेड़ का आभार व्‍यक्‍त किया और अपना छत्‍ता आम के पेड़ पर बना लिया।

समय बीतता गया और कुछ दिनो बाद जंगल में कुछ लकडहारे आए उन लोग को आम का पेड़ दिखाई दिया और वे आपस में बात करने लगे कि इस आम के पेड़ को काट कर लकड़िया ले लिया जाये।

वे लोग अपने औजार लेकर आम के पेड़ को काटने चले तभी एक व्‍यक्ति ने ऊपर की और देखा तो उसने दूसरे से कहा, नहीं, इसे मत काटो। इस पेड़ पर तो मधुमक्‍खी का छत्‍ता है, कहीं ये उड गई तो हमारा बचना मुश्किल हो जायेगा।

उसी समय एक आदमी ने कहा क्‍यों न हम लोग ये पीपल का पेड़ ही काट लिया जाए इसमें हमें ज्‍यादा लकड़िया भी मिल जायेगी और हमें कोई खतरा भी नहीं होगा।

वे लोग मिल कर पीपल के पेड़ को काटने लगे। पीपल का पेड़ दर्द के कारण जोर-जोर से चिल्‍लाने लगा, बचाओ-बचाओ-बचाओ….

आम को पीपल की चिल्‍लाने की आवाज आई, तो उसने देखा कि कुछ लोग मिल कर उसे काट रहे हैं।

आम के पेड़ ने मधुमक्‍खी से कहा, हमें पीपल के प्राण बचाने चाहिए….. आम के पेड़ ने मधुमक्‍खी से पीपल के पेड़ के प्राण बचाने का आग्रह किया तो मधुमक्‍खी ने उन लोगो पर हमला कर दिया, और वे लोग अपनी जान बचा कर जंगल से भाग गए।

पीपल के पेड़ ने मधुमक्‍खीयो को धन्‍यवाद दिया और अपने आचरण के लिए क्षमा मांगी।

तब मधुमक्‍खीयो ने कहा, धन्‍यवाद हमें नहीं, आम के पेड़ को दो जिन्‍होने आपकी जान बचाई है, क्‍योंकि हमें तो इन्‍होंने कहा था कि अगर कोई बुरा करता है तो इसका मतलब यह नही है कि हम भी वैसा ही करे।

अब पीपल को अपने किये पर पछतावा हो रहा था और उसका अंहकार भी टूट चुका था। पीपल के पेड़ को उसके अंहकार की सजा भी मिल चुकी थी।

*शिक्षा:- हमे कभी अंहकार नही करना चाहिए। जितना हो सके, लोगो के काम ही आना चाहिए, जिससे वक्‍त पड़ने पर तुम भी किसी से मदद मांग सको। जब हम किसी की मदद करेंगे तब ही कोई हमारी भी मदद करेगा।*


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माँ रेणुका, पिता जमदग्नि ये सब जानते हैं
विष्णु का छठा अवतार मुझे सब मानते हैं..
मैं भृगु वंश में जन्मा पितामह त्रिकालदर्शी थे
भृगुसंहिता के प्रणेता दिव्यदृष्टि वाले महर्षि थे..
मेरे आगमन का ध्येय विशेष मैं विष्णु का आवेशावतार था
मिथ्या दंभ से धरा तप्त थी मेरा कर्म उद्दंडियों का संहार था..
महामनाओं की कृपा मुझ पर अनंत और अनवरत रही
दिव्य शस्त्र और दिव्य मंत्र मिले तन पर अभेद परत रही..
मेरे जीवन का एकमेव ध्येय मातृभूमि का उपचार करना था
फरसे के प्रहार से पापियों का पापयुक्त दूषित जीवन हरना था..
इक्कीस बार भू को मैंने पापीयों से विमुक्त किया था
जगत वन्दनीय धरा को आततायी रक्त से सिक्त किया था..
पशु-पक्षियों का और मेरा आपस में बहुत प्यार था
उनके संग संततियों सा मेरा प्रेमपूर्ण भावुक व्यवहार था..
काव्य से प्रेम था मुझे मैं, शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र का रचनाकार रहा
मेरे द्वारा रचित परशुराम गायत्री इच्छित फल पाने का अचूक आधार रहा..
स्त्री स्वातंत्र्य का पक्षधर मैं मैंने बहु पत्नी विवाह पर आघात किया
अनसूया लोपामुद्रा के सहयोग से नारी-जागृति-अभियान का सूत्रपात किया..
अक्षय तृतीया पर मेरा जन्मदिन मनाओगे
मेरी जीवन गाथा सभी को सुनाओगे..
मेरा आशीष है सबको ज्ञानवान बनो विद्यादान करो
सुसुप्त पड़ी हैं शक्तियां अपनी क्षमता की पहचान करो..

जय परशुराम ! जय श्रीराम !