Saturday, October 12, 2024

इतिहास गा रहा है

 इतिहास गा रहा है (गीत सुने)

इतिहास गा रहा है, दिन रात गुण हमारा,
दुनिया के लोग सुन लो, यह देश है हमारा।।

इस पर जनम लिया है, इसका पिया है पानी,
माता है यह हमारी, यह है पिता हमारा।।

यह देवता हिमालय, हमको पुकारता है,
गुण गा रही है निशिदिन, गंगा की शुभ्र धारा।।

पोरस की वीरता को, झेलम तू ही बता दे,
यूनान का सिकंदर, था तेरे तट पे हारा।।

उज्जैन फिर सुना दे, विक्रम की वह कहानी,
जिसमें प्रकट हुआ था, संवत् नया हमारा।।

आता है याद रह-रह, गुप्तों का वह ज़माना,
सारे जहाँ पे छाया, वह स्वर्ण युग हमारा।।

चित्तौड़, रायगढ़ और, चमकौर फिर है गरजा,
सदियों लड़ा निरन्तर, आज़ाद ख़ूँ हमारा।।

दी क्रान्तिकारियों ने, अंग्रेज़ को चुनौती,
पल-पल प्रकट हुआ था, स्वातन्त्र्य वह हमारा।।

हम इनको भूल जायें, सम्भव नहीं कभी यह,
इनके लिये जियेंगे, यह धर्म है हमारा।।

होगा भविष्य उज्ज्वल, संसार में अनोखा,
बतला रहा है हमको, यह संगठन हमारा।।


















Wednesday, March 31, 2021

 

Consumer<Object> print = System.out::println;
// ...
print.accept("Hello, World!");


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interface Interf
{
public Sample m1();
}

public class Test implements Interf {
public Sample m1()
{
return new Sample();
}
//Constructor Reference
Interf i = () -> new Sample();
Interf i1 = Sample::new;

}

------------------------------------------------------------------------------

interface Interf
{
public void m1();
}

public class Test {
public void m2()
{
System.out.println("Method Reference");
}

public static void main(String[] args) {

Interf i = () -> System.out.println("By Lambda Expression");
i.m1();

Test test = new Test();
Interf i1 = test::m2;
i1.m1();
}
}

Saturday, April 25, 2020

सिय राम मय सब जग जानी करहु प्रणाम जोरी जुग पानी ।।

अर्थात –
पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए।

मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी।।

दीन दयाल बिरिदु संभारी, हरहु नाथ मम संकट भारी।।

सीता राम चरण रति मोरे । अनु दिन बढ़उ अनुग्रह तोरे॥

सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं॥1॥

अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँति। सब तजि भजनु करौं दिन राती॥

मंगल मूर्ति मारुति नंदन सकल अमंगल मूल निकंदन॥

बिनु सत्संग विवेक न होई। रामकृपा बिनु सुलभ न सोई।।

होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा। तब रघुनाथ चरन अनुरागा॥

उमा कहऊँ मैं अनुभव अपना, सत हरि भजन जगत सब सपना॥

हरि व्यापक सर्वत्र समाना । प्रेम ते प्रकट होहिं मैं जाना।

बंदउ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।

देह धरे कर यह फलु भाई। भजिअ राम सब काम बिहाई।।

मन कर्म वचन छाडि चतुराई, भजत कृपा करि हहिं रघुराई॥

परहित सरिस धर्म नहिं भाई।पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ।।

जहाँ सुमति तहाँ सम्पति नाना; जहाँ कुमति तहाँ बिपति निदाना॥

कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ। मति अनुरूप राम गुन गावउँ॥

कवित विवेक एक नहिं मोरे। सत्य कहउँ लिखि कागद कोरे।।

जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं। तीरथ सकल जहाँ चलि आवहिं॥

बरषहिं राम सुजस बर बारी। मधुर मनोहर मंगलकारी ॥

जय जय राम सिया राम, जय जय राम सिया राम
जय जय राम सिया राम, जय जय राम सिया राम
जय जय राम सिया राम, जय जय राम सिया राम
जय जय राम सिया राम, जय जय राम सिया राम
जय जय राम सिया राम, जय जय राम सिया राम
जय जय राम सिया राम, जय जय राम सिया राम
जय जय राम सिया राम, जय जय राम सिया राम
जय जय राम सिया राम. जय जय राम सिया राम


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ॐ जाम्दग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि।
तन्नो परशुरामः प्रचोदयात्।।
ॐ रां रां ॐ रां रां ।
ॐ पशुहस्ताय नमः इति मूलमन्त्रः।।

‘भगवान परशुराम जयंती’ के शुभ पर्व पर आप सभी को शुभकामनाएँ

#परशुराम_जयंती

मैं परशुराम बोल रहा हूँ...
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रात्रि कहांनी। ❣️❣️❣️❣️

*🟠👉🏿अंहकार की सजा➖*


एक बहुत ही घना जंगल था। उस जंगल में एक आम और एक पीपल का भी पेड़ था। एक बार मधुमक्‍खी का झुण्‍ड उस जंगल में रहने आया, लेकिन उन मधुमक्‍खी के झुण्‍ड को रहने के लिए एक घना पेड़ चाहिए था।
रानी मधुमक्‍खी की नजर एक पीपल के पेड़ पर पड़ी तो रानी मधुमक्‍खी ने पीपल के पेड़ से कहा, हे पीपल भाई, क्‍या में आपके इस घने पेड़ की एक शाखा पर अपने परिवार का छत्‍ता बना लु?

पीपल को कोई परेशान करे यह पीपल को पसंद नही था। अंहकार के कारण पीपल ने रानी मधुमक्‍खी से गुस्‍से में कहा, हटो यहाँ से, जाकर कहीं और अपना छत्‍ता बनालो। मुझे परेशान मत करो।

पीपल की बात सुन कर पास ही खडे आम के पेड़ ने कहा, पीपल भाई बना लेने दो छत्‍ता। ये तुम्‍हारी शाखाओं में सुरक्षित रहेंगी।

पीपल ने आम से कहा, तुम अपना काम करो, इतनी ही चिन्‍ता है तो तुम ही अपनी शाखा पर छत्‍ता बनाने के लिए क्‍यों नही कह देते?

इस बात से आम के पेड़ ने मधुमक्‍खी रानी से कहा, हे रानी मक्‍खी, अगर तुम चाहो तो तुम मेरी शाखा पर अपना छत्‍ता बना लो।

इस पर रानी मधुमक्‍खी ने आम के पेड़ का आभार व्‍यक्‍त किया और अपना छत्‍ता आम के पेड़ पर बना लिया।

समय बीतता गया और कुछ दिनो बाद जंगल में कुछ लकडहारे आए उन लोग को आम का पेड़ दिखाई दिया और वे आपस में बात करने लगे कि इस आम के पेड़ को काट कर लकड़िया ले लिया जाये।

वे लोग अपने औजार लेकर आम के पेड़ को काटने चले तभी एक व्‍यक्ति ने ऊपर की और देखा तो उसने दूसरे से कहा, नहीं, इसे मत काटो। इस पेड़ पर तो मधुमक्‍खी का छत्‍ता है, कहीं ये उड गई तो हमारा बचना मुश्किल हो जायेगा।

उसी समय एक आदमी ने कहा क्‍यों न हम लोग ये पीपल का पेड़ ही काट लिया जाए इसमें हमें ज्‍यादा लकड़िया भी मिल जायेगी और हमें कोई खतरा भी नहीं होगा।

वे लोग मिल कर पीपल के पेड़ को काटने लगे। पीपल का पेड़ दर्द के कारण जोर-जोर से चिल्‍लाने लगा, बचाओ-बचाओ-बचाओ….

आम को पीपल की चिल्‍लाने की आवाज आई, तो उसने देखा कि कुछ लोग मिल कर उसे काट रहे हैं।

आम के पेड़ ने मधुमक्‍खी से कहा, हमें पीपल के प्राण बचाने चाहिए….. आम के पेड़ ने मधुमक्‍खी से पीपल के पेड़ के प्राण बचाने का आग्रह किया तो मधुमक्‍खी ने उन लोगो पर हमला कर दिया, और वे लोग अपनी जान बचा कर जंगल से भाग गए।

पीपल के पेड़ ने मधुमक्‍खीयो को धन्‍यवाद दिया और अपने आचरण के लिए क्षमा मांगी।

तब मधुमक्‍खीयो ने कहा, धन्‍यवाद हमें नहीं, आम के पेड़ को दो जिन्‍होने आपकी जान बचाई है, क्‍योंकि हमें तो इन्‍होंने कहा था कि अगर कोई बुरा करता है तो इसका मतलब यह नही है कि हम भी वैसा ही करे।

अब पीपल को अपने किये पर पछतावा हो रहा था और उसका अंहकार भी टूट चुका था। पीपल के पेड़ को उसके अंहकार की सजा भी मिल चुकी थी।

*शिक्षा:- हमे कभी अंहकार नही करना चाहिए। जितना हो सके, लोगो के काम ही आना चाहिए, जिससे वक्‍त पड़ने पर तुम भी किसी से मदद मांग सको। जब हम किसी की मदद करेंगे तब ही कोई हमारी भी मदद करेगा।*


🔹🔸🔹♦️🔵♦️🔹🔸🔹

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माँ रेणुका, पिता जमदग्नि ये सब जानते हैं
विष्णु का छठा अवतार मुझे सब मानते हैं..
मैं भृगु वंश में जन्मा पितामह त्रिकालदर्शी थे
भृगुसंहिता के प्रणेता दिव्यदृष्टि वाले महर्षि थे..
मेरे आगमन का ध्येय विशेष मैं विष्णु का आवेशावतार था
मिथ्या दंभ से धरा तप्त थी मेरा कर्म उद्दंडियों का संहार था..
महामनाओं की कृपा मुझ पर अनंत और अनवरत रही
दिव्य शस्त्र और दिव्य मंत्र मिले तन पर अभेद परत रही..
मेरे जीवन का एकमेव ध्येय मातृभूमि का उपचार करना था
फरसे के प्रहार से पापियों का पापयुक्त दूषित जीवन हरना था..
इक्कीस बार भू को मैंने पापीयों से विमुक्त किया था
जगत वन्दनीय धरा को आततायी रक्त से सिक्त किया था..
पशु-पक्षियों का और मेरा आपस में बहुत प्यार था
उनके संग संततियों सा मेरा प्रेमपूर्ण भावुक व्यवहार था..
काव्य से प्रेम था मुझे मैं, शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र का रचनाकार रहा
मेरे द्वारा रचित परशुराम गायत्री इच्छित फल पाने का अचूक आधार रहा..
स्त्री स्वातंत्र्य का पक्षधर मैं मैंने बहु पत्नी विवाह पर आघात किया
अनसूया लोपामुद्रा के सहयोग से नारी-जागृति-अभियान का सूत्रपात किया..
अक्षय तृतीया पर मेरा जन्मदिन मनाओगे
मेरी जीवन गाथा सभी को सुनाओगे..
मेरा आशीष है सबको ज्ञानवान बनो विद्यादान करो
सुसुप्त पड़ी हैं शक्तियां अपनी क्षमता की पहचान करो..

जय परशुराम ! जय श्रीराम !

Sunday, August 25, 2019

Tuesday, August 6, 2019

Vikramaditya
अकबर के नौरत्नों से इतिहास भर दिया पर
महाराजा विक्रमादित्य के नवरत्नों की कोई चर्चा पाठ्यपुस्तकों में नहीं है !
जबकि सत्य यह है कि अकबर को महान सिद्ध करने के लिए महाराजा विक्रमादित्य की नकल करके कुछ धूर्तों ने इतिहास में लिख दिया कि अकबर के भी नौ रत्न थे ।

राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों को जानने का प्रयास करते हैं ...✍️

राजा विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों के विषय में बहुत कुछ पढ़ा-देखा जाता है। लेकिन बहुत ही कम लोग ये जानते हैं कि आखिर ये नवरत्न थे कौन-कौन।

राजा विक्रमादित्य के दरबार में मौजूद नवरत्नों में उच्च कोटि के कवि, विद्वान, गायक और गणित के प्रकांड पंडित शामिल थे, जिनकी योग्यता का डंका देश-विदेश में बजता था। चलिए जानते हैं कौन थे।

ये हैं नवरत्न –

1–धन्वन्तरि-
नवरत्नों में इनका स्थान गिनाया गया है। इनके रचित नौ ग्रंथ पाये जाते हैं। वे सभी आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित हैं। चिकित्सा में ये बड़े सिद्धहस्त थे। आज भी किसी वैद्य की प्रशंसा करनी हो तो उसकी ‘धन्वन्तरि’ से उपमा दी जाती है।

2–क्षपणक-
जैसा कि इनके नाम से प्रतीत होता है, ये बौद्ध संन्यासी थे।
इससे एक बात यह भी सिद्ध होती है कि प्राचीन काल में मन्त्रित्व आजीविका का साधन नहीं था अपितु जनकल्याण की भावना से मन्त्रिपरिषद का गठन किया जाता था। यही कारण है कि संन्यासी भी मन्त्रिमण्डल के सदस्य होते थे।
इन्होंने कुछ ग्रंथ लिखे जिनमें ‘भिक्षाटन’ और ‘नानार्थकोश’ ही उपलब्ध बताये जाते हैं।

3–अमरसिंह-
ये प्रकाण्ड विद्वान थे। बोध-गया के वर्तमान बुद्ध-मन्दिर से प्राप्य एक शिलालेख के आधार पर इनको उस मन्दिर का निर्माता कहा जाता है। उनके अनेक ग्रन्थों में एक मात्र ‘अमरकोश’ ग्रन्थ ऐसा है कि उसके आधार पर उनका यश अखण्ड है। संस्कृतज्ञों में एक उक्ति चरितार्थ है जिसका अर्थ है ‘अष्टाध्यायी’ पण्डितों की माता है और ‘अमरकोश’ पण्डितों का पिता। अर्थात् यदि कोई इन दोनों ग्रंथों को पढ़ ले तो वह महान् पण्डित बन जाता है।

4–शंकु –
इनका पूरा नाम ‘शङ्कुक’ है। इनका एक ही काव्य-ग्रन्थ ‘भुवनाभ्युदयम्’ बहुत प्रसिद्ध रहा है। किन्तु आज वह भी पुरातत्व का विषय बना हुआ है। इनको संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान् माना गया है।

5–वेतालभट्ट –
विक्रम और वेताल की कहानी जगतप्रसिद्ध है। ‘वेताल पंचविंशति’ के रचयिता यही थे, किन्तु कहीं भी इनका नाम देखने सुनने को अब नहीं मिलता। ‘वेताल-पच्चीसी’ से ही यह सिद्ध होता है कि सम्राट विक्रम के वर्चस्व से वेतालभट्ट कितने प्रभावित थे। यही इनकी एक मात्र रचना उपलब्ध है।

6–घटखर्पर –
जो संस्कृत जानते हैं वे समझ सकते हैं कि ‘घटखर्पर’ किसी व्यक्ति का नाम नहीं हो सकता। इनका भी वास्तविक नाम यह नहीं है। मान्यता है कि इनकी प्रतिज्ञा थी कि जो कवि अनुप्रास और यमक में इनको पराजित कर देगा उनके यहां वे फूटे घड़े से पानी भरेंगे। बस तब से ही इनका नाम ‘घटखर्पर’ प्रसिद्ध हो गया और वास्तविक नाम लुप्त हो गया।

इनकी रचना का नाम भी ‘घटखर्पर काव्यम्’ ही है। यमक और अनुप्रास का वह अनुपमेय ग्रन्थ है।
इनका एक अन्य ग्रन्थ ‘नीतिसार’ के नाम से भी प्राप्त होता है।

7–कालिदास –
ऐसा माना जाता है कि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के प्राणप्रिय कवि थे। उन्होंने भी अपने ग्रन्थों में विक्रम के व्यक्तित्व का उज्जवल स्वरूप निरूपित किया है। कालिदास की कथा विचित्र है। कहा जाता है कि उनको देवी ‘काली’ की कृपा से विद्या प्राप्त हुई थी। इसीलिए इनका नाम ‘कालिदास’ पड़ गया। संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से यह कालीदास होना चाहिए था किन्तु अपवाद रूप में कालिदास की प्रतिभा को देखकर इसमें उसी प्रकार परिवर्तन नहीं किया गया जिस प्रकार कि ‘विश्वामित्र’ को उसी रूप में रखा गया।

जो हो, कालिदास की विद्वता और काव्य प्रतिभा के विषय में अब दो मत नहीं है। वे न केवल अपने समय के अप्रितम साहित्यकार थे अपितु आज तक भी कोई उन जैसा अप्रितम साहित्यकार उत्पन्न नहीं हुआ है। उनके चार काव्य और तीन नाटक प्रसिद्ध हैं। शकुन्तला उनकी अन्यतम कृति मानी जाती है।

8–वराहमिहिर –
भारतीय ज्योतिष-शास्त्र इनसे गौरवास्पद हो गया है। इन्होंने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है। इनमें-‘बृहज्जातक‘, सुर्यसिद्धांत, ‘बृहस्पति संहिता’, ‘पंचसिद्धान्ती’ मुख्य हैं। गणक तरंगिणी’, ‘लघु-जातक’, ‘समास संहिता’, ‘विवाह पटल’, ‘योग यात्रा’, आदि-आदि का भी इनके नाम से उल्लेख पाया जाता है।

9–वररुचि-
कालिदास की भांति ही वररुचि भी अन्यतम काव्यकर्ताओं में गिने जाते हैं। ‘सदुक्तिकर्णामृत’, ‘सुभाषितावलि’ तथा ‘शार्ङ्धर संहिता’, इनकी रचनाओं में गिनी जाती हैं।
इनके नाम पर मतभेद है। क्योंकि इस नाम के तीन व्यक्ति हुए हैं उनमें से-
1.पाणिनीय व्याकरण के वार्तिककार-वररुचि कात्यायन,
2.‘प्राकृत प्रकाश के प्रणेता-वररुचि
3.सूक्ति ग्रन्थों में प्राप्त कवि-वररुचि








आळस नींद किसान ने खोवे , चोर ने खोवे खांसी ,
टक्को ब्याज मूळ नै खोवे , रांड नै खोवे हांसी। 

अर्थ - किसान को निद्रा व आलस्य नष्ट कर देता है , खांसी चोर का काम बिगाड़ देती है , ब्याज के  लालच से  मूल धन  भी है डूब जाता है और हंसी मसखरी विधवा को बिगाड़ देती है।

कोई तन दुखी कोई मन दुखी , कोई धन बिन रहत उदास ।
सुखी वही संसार मे ,जो रहे श्याम के साथ।।


जो जितना मीठा होता है, वो अपना ही नाश करता है।
देखो इस मीठे गन्ने को, कोल्हू में पेरा जाता है।।

Tuesday, January 31, 2017



सतसैया कै दोहरे अरु नावकु कै तीरु।
देखत तौ छोटैं लगैं घाव करैं गंभीरु॥


सूचना

हिन्दू साम्राज्य दिवस
15 जून 2019 शनिवार

बंधुओ, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रत्येक वर्ष 15 जून को हिन्दू साम्राज्य दिवस के रुप में मनाता है। हिन्दू साम्राज्य दिवस का प्रारंभ छत्रपति शिवाजी जी ने सभी हिन्दुओं को मुग़ल और यवन आततायियों के विरुद्ध एकजुट होकर रहने और हिन्दू शक्ति की पुनरुत्थान के लिए किया था ।

अपनी सोसायटी के *सेंट्रल पार्क में सुबह 6:30 से 7:30 बजे तक लगने वाली शाखा में भी इस पावन पर्व को 15 जून दिन शनिवार को मनाया जाएगा।* आप सब से आग्रह है कि इस कार्यक्रम में सम्मिलित होकर गौरवशाली हिन्दू जीवन पद्धति और शक्ति को इस विघटित समाज में पुनः स्थापित करने में अपना योगदान देने का कष्ट करें।

धन्यवाद
निवेदक: भाऊराव देवरस शाखा, ला रेसिडेन्सिया

धार्मिक या वैज्ञानिक ? ? ?

एक माँ अपने पूजा-पाठ से फुर्सत पाकर अपने विदेश में रहने वाले बेटे से फोन पर बात करते समय पूँछ बैठी "बेटा! कुछ पूजा-पाठ भी करते हो या फुर्सत ही नहीं मिलती?"
बेटे ने माँ को बताया - "माँ, मैं एक आनुवंशिक वैज्ञानिक हूँ, मैं अमेरिका में मानव के विकास पर काम कर रहा हूँ, विकास का सिद्धांत, चार्ल्स डार्विन क्या आपने उसके बारे में सुना है?"
उसकी माँ मुस्कुरा कर बोली - “मैं डार्विन के बारे में जानती हूँ, बेटा ... मैं यह भी जानती हूँ कि तुम जो सोचते हो कि उसने जो भी खोज की, वह वास्तव में सनातन-धर्म के लिए बहुत पुरानी खबर है"।
“हो सकता है माँ !” बेटे ने भी व्यंग्यपूर्वक कहा ..
“यदि तुम कुछ होशियार हो, तो इसे सुनो” उसकी माँ ने प्रतिकार किया... “क्या तुमने दशावतार के बारे में सुना है? विष्णु के दस अवतार?”
बेटे ने सहमति में कहा "हाँ! पर दशावतार का मेरी रिसर्च से क्या लेना-देना?"

माँ फिर बोली: "लेना-देना है मेरे लाल... मैं तुम्हें बताती हूँ कि तुम और मि. डार्विन क्या नहीं जानते हैं ?"
"पहला अवतार था मत्स्य अवतार, यानि मछली| ऐसा इसलिए कि जीवन पानी में आरम्भ हुआ| यह बात सही है या नहीं ?”
बेटा अब और अधिक ध्यानपूर्वक सुनने लगा |

उसके बाद आया दूसरा कूर्म अवतार, जिसका अर्थ है कछुआ, क्योंकि जीवन पानी से जमीन की ओर चला गया 'उभयचर (Amphibian)'| तो कछुए ने समुद्र से जमीन की ओर विकास को दर्शाया|

तीसरा था वराह अवतार, जंगली सूअर, जिसका मतलब जंगली जानवर जिनमें बहुत अधिक बुद्धि नहीं होती है| तुम उन्हें डायनासोर कहते हो, सही है? बेटे ने आंखें फैलाते हुए सहमति जताई|

चौथा अवतार था नृसिंह अवतार, आधा मानव, आधा पशु, जंगली जानवरों से बुद्धिमान जीवों तक विकास|

पांचवें वामन अवतार था, बौना जो वास्तव में लंबा बढ़ सकता था| क्या तुम जानते हो ऐसा क्यों है? क्योंकि मनुष्य दो प्रकार के होते थे, होमो इरेक्टस और होमो सेपिअंस, और होमो सेपिअंस ने लड़ाई जीत ली|"
बेटा दशावतार की प्रासंगिकता पर स्तब्ध हो रहा था जबकि उसकी माँ पूर्ण प्रवाह में थी...

छठा अवतार था परशुराम - वे, जिनके पास कुल्हाड़ी की ताकत थी, वो मानव जो गुफा और वन में रहने वाला था| गुस्सैल, और सामाजिक नहीं|

सातवां अवतार था मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, सोच युक्त प्रथम सामाजिक व्यक्ति, जिन्होंने समाज के नियम बनाए और समस्त रिश्तों का आधार|

आठवां अवतार था जगद्गुरु श्री कृष्ण, राजनेता, राजनीतिज्ञ, प्रेमी जिन्होंने ने समाज के नियमों का आनन्द लेते हुए यह सिखाया कि सामाजिक ढांचे में कैसे रहकर फला-फूला जा सकता है|

नवां अवतार था भगवान बुद्ध, वे व्यक्ति जो नृसिंह से उठे और मानव के सही स्वभाव को खोजा| उन्होंने मानव द्वारा ज्ञान की अंतिम खोज की पहचान की|

और अंत में दसवां अवतार कल्कि आएगा, वह मानव जिस पर तुम काम कर रहे हो| वह मानव जो आनुवंशिक रूप से अति-श्रेष्ठ होगा|

बेटा अपनी माँ को अवाक होकर सुनता रहा,
अंत में बोल पड़ा "यह अद्भुत है माँ, भारतीय दर्शन वास्तव में अर्थपूर्ण है"।

पुराण अर्थपूर्ण हैं, सिर्फ आपका देखने का नज़रिया होना चाहिए धार्मिक या वैज्ञानिक।

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अध्याय १४ गुणत्रयविभागयोग 

श्रीभगवानुवाच -
परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम् ।
यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः ॥ १४ -१ ॥

श्री भगवान् बोले - ज्ञानों में भी अति उत्तम उस परम ज्ञान को मैं फिर कहूँगा,
जिसको जानकर सब मुनिजन इस संसार से मुक्त होकर परम सिद्धि को प्राप्त हो गये हैं ।

॥ हरि: ॐ तत् सत् ॥ हरि: ॐ तत् सत् ॥ हरि: ॐ तत् सत् ॥

॥ श्रीकृष्णा अर्पणमस्तु ॥
॥ जय श्रीकृष्णा जी ॥

Bhagavad-Gita Chapter 14
Bhagavad Gita: Sanskrit recitation with Sanskrit text - Chapter 14
susanskrit org bhagwad-gita
Bhagavad Gita 14th chapter chanting out of memory by 8 year old Abhigya
shrimad bhagwat geeta adhyay 14 by somnath sharma

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* जागरूकता *
दिल्ली में *क्या करें पानी और सीवर सम्बंधित समस्या* के लिए जैसे कि गन्दा पानी, पानी ना आना, सीवर जाम, सीवर ढक्कन टूटा या ना होना, सीवर का पानी रोड पर बहना, अन्य ....

*1916 (नि: शुल्क) पर कॉल कर कंप्लेंट करें।*
OR
*Register online in seconds* at
http://www.delhi.gov.in/wps/wcm/connect/DOIT_DJB/djb/home/customer+section/complaint+redressal

तब भी समस्या ना सुलझे तो *www.pgms.delhi.gov.in पर कंप्लेंट करें।*

जागरूकता अभियान से जुड़ने के लिए 9818675115 पर नाम Whatsapp करें

मेसेज सभी को फॉरवर्ड करें।



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हेमचंद्र विक्रमादित्य ( हेमू ) --

आपको इतिहास की किताबों ने ये तो बताया होगा कि हुमायूँ के बाद शेरशाह सूरी दिल्ली की गद्दी पर काबिज हुआ, इन्हीं किताबों में आपने ये भी पढ़ा होगा कि हुमायूं ने किसी मल्लाह को एक दिन के लिये राज सौंपा था जिसने चमड़े के सिक्के चलाये थे, उन्हीं किताबों में आपने शायद ये भी पढ़ा हो कि पृथ्वीराज चौहान दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले अंतिम हिन्दू राजा थे पर इतिहास की किसी किताब ने आपको ये नहीं बताया होगा कि शेरशाह सूरी और अकबर के बीच दिल्ली की गद्दी पर पूरे वैदिक रीति से राज्याभिषेक करवाते हुए एक हिन्दू सम्राट भी राज्यासीन हुए थे जिन्होंने 350 साल के इस्लामी शासन को उखाड़ फेंका था, इन किताबों ने आपको नहीं बताया होगा कि दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद मध्यकालीन भारत के इस अंतिम हिन्दू सम्राट ने "विक्रमादित्य" की उपाधि धारण की थी और अपने नाम के सिक्के चलवाये थे, इन्होंनें आपको ये भी नहीं बताया होगा कि इस पराक्रमी शासक ने अपने जीवन में 24 युद्ध का नेतृत्व करते हुए 22 में विजय पाई थी !

जाहिर है उस सम्राट के बारे में न तो हमें इतिहास की किताबों ने बताया और न ही हमारे इतिहास के शिक्षकों ने हमें पढ़ाया तो फिर कुछ पता हो भी तो कैसे हो?

एक गरीब ब्राह्मण पुरोहित के घर में एक पुत्र पैदा हुआ था जो अपनी योग्यता और लगन से 1553 में सूरी सल्तनत के मुख्य सेनापति से लेकर प्रधानमंत्री के ओहदे तक पहुँच गये थे, 1555 ईस्वी में जब मुगल सम्राट हूमायूं की मृत्यु हुई थी उस समय वो बंगाल में थे और वहीं से वो मुगलों को भारत भूमि से खदेड़ने के इरादे से सेना लेकर दिल्ली चल पड़े और मुगलों को धूल चटाते हुए 7 अक्टूबर 1556 को दिल्ली के सिंहासन पर विराजमान हुये. दिल्ली के पुराने किले ने सैकड़ों साल बाद पूर्ण वैदिक रीति से एक हिन्दू सम्राट का राज्याभिषेक होते देखा. हेमू ने राज्याभिषेक के बाद अजातशत्रु सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर 'हेमचंद विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की. उनके सिंहासनरूढ़ होने के एक महीने बाद ही अकबर ने एक बड़ी भारी सेना उनके खिलाफ भेजी. महान पराक्रमी हेमू ने पानीपत के इस दूसरे युद्ध में अकबर की सेना में कोहराम मचा दिया पर धोखे से किसी ने उनकी दायीं आँख में तीर मार दिया जिससे युद्ध का पासा पलट गया और हेमू हार गये. 5 नवंबर 1556 का दिन भारत के लिये दुर्भाग्य लेकर आया, अकबर के जालिम सलाहकार बैरम खान ने इस अंतिम हिन्दू सम्राट को कलमा पढ़ने को कहा और उनके इंकार के बाद उनका सर कलम करवा दिया. कहा जाता है कि पानीपत की दूसरी लड़ाई के बाद जब अकबर ने घायल हेमू के सर कलम का आदेश दिया था तब हेमू के पराक्रम से परिचित उसके किसी भी सैनिक में ये हिम्मत नहीं थी कि वो हेमू का सर काट सके. इन बुजदिलों ने हेमू की बर्बर हत्या करने के बाद उनके 80 वर्षीय पिता पूरनदास पर भी इस्लाम कबूलने का दबाब डाला और इंकार करने पर उनकी भी हत्या करवा दी !

अगर पानीपत के द्वितीय युद्ध में छल से प्रतापी सम्राट हेमू नहीं मारे जाते तो आज भारत का इतिहास कुछ और होता मगर हमारी बदनसीबी है कि हमें अपने इतिहास का न तो कुछ पता है न ही उसके बारे में कुछ जानने में कोई दिलचस्पी है इसलिये कोई इरफ़ान हबीब, विपिन चन्द्र या रोमिला थापर हमें कुछ भी पढ़ा जाता है और कोई भंसाली हमारे ऐतिहासिक चरित्रों के साथ बलात्कार करने की हिमाकत करता है !

वो ऐसी हिमाकत इसलिये कर सकतें हैं क्योंकि उस सम्राट की हवेली जो रेवाड़ी के कुतुबपुर मुहल्ले में स्थित हैं वो आज बकरी और मुर्गी पालन के काम आ रही है और इधर हम मुगलों और आक्रांताओं के मजारों, गुसलखानों और हरमखानों  का हर साल रंग-रोगन करवा रहें हैं.

ये दोगले इतिहासकार तो हेमू को यथोचित स्थान देने से रहे इसलिये आखिरी हिंदू सम्राट 'हेमचंद विक्रमादित्य' के बारे में खुद भी पढ़िए, अपने बच्चों को भी पढ़ाइये, इतिहासकारों की गर्दनें दबोच कर हेमू की उपेक्षा पर उनसे सवाल पूछिए और हो सके तो कभी हेमू की हवेली पर जाकर उनको नमन करिये वर्ना भंसालियों और हबीबों द्वारा अपमानित होने वाली सूची में माँ पद्मिनी अंतिम नहीं है, ये किसी दिन हेमू को भी मुग़ल दरबार का गुलाम बनाकर अपने फ़िल्मी बाजार में बेच देंगे !!!