अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं || -2
कौन कहते है भगवान आते नहीं, तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं |
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
कौन कहते है भगवान खाते नहीं, बेर शबरी के जैसे खिलते नहीं |
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
कौन कहते है भगवान सोते नहीं, माँ यशोदा के जैसे सुलाते नहीं |
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
कौन कहते है भगवान नाचते नहीं, तुम गोपियों के जैसे नचाते नहीं |
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
____________________________________________________________________
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम् |
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम ||
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम |
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम ||
भजु दीन बंधू दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम |
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम ||
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारू अंग विभुषणं |
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर - धुषणं ||
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम |
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम ||
____________________________________________________________________
राधे कृष्ण की ज्योति अलौकिक तीनो लोक में छाये रही है
भक्ति विवश एक प्रेम पुजारिन फिर भी दीप जलाये रही है
कृष्ण को गोकुल से राधे को ..
कृष्ण को गोकुल से राधे को बरसाने से बुलाये रही है
दोनों करो कृपा कर जोगन आरती गाये रही है -२
भोर भये से साँझ ढले तक सेवा का नित नियम हमारो
स्नान कराये वो, वस्त्र उडाये वो, भोग लगाये वो लागत प्यारो
कब से निहारत आपकी ओर ..
कब से निहारत आपको ओर की आप हमारी ओर निहारो
राधे कृष्ण हमारे धाम को जानि वृन्दावन धाम पधारो -2
____________________________________________________________________
चरण वंदना चरण वंदना
प्रभु श्रीराम की चरण वंदना -2
अयोध्या पति राम की चरण वंदना
प्रभु श्रीराम की चरण वंदना -2
शिव के धनुष को जिसने तोड़ कर दिखाया
राजा जनक जी का मान बढ़ाया
सीता और राम की चरण वंदना
चरण वंदना चरण वंदना
प्रभु श्रीराम की चरण वंदना -2
मात पिता की आज्ञा मान के दिखाया
चौदह बरस का वनवाश बिताया
राम जी के नाम की चरण वंदना
प्रभु श्रीराम की चरण वंदना -2
____________________________________________________________________
श्री विष्णु षोडशनाम स्तोत्र
शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये॥१॥
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥
औषधे चिंतये विष्णुम(1),भोजने च जनार्धनम(2),
शयने पद्मनाभं च(3), विवाहे च प्रजापतिम(4),
युद्धे चक्रधरम देवं(5), प्रवासे च त्रिविक्रमं(6),
नारायणं तनु त्यागे(7), श्रीधरं प्रिय संगमे(8),
दुःस्वप्ने स्मर गोविन्दम(9),संकटे मधुसूधनम(10),
कानने नारासिम्हम च(11),पावके जलाशयिनाम(12),
जलमध्ये वराहम च(13), पर्वते रघु नन्दनं(14),
गमने वामनं चैव(15), सर्व कार्येशु माधवं(16).
षोडशैतानी नमानी प्रातरुत्थाय यह पठेत
सर्वपापा विर्निमुक्तो विष्णुलोके महीयते