Friday, December 4, 2015


अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं || -2
कौन कहते है भगवान आते नहीं, तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं |
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
कौन कहते है भगवान खाते नहीं, बेर शबरी के जैसे खिलते नहीं |
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
कौन कहते है भगवान सोते नहीं, माँ यशोदा के जैसे सुलाते नहीं |
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
कौन कहते है भगवान नाचते नहीं, तुम गोपियों के जैसे नचाते नहीं |
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
अच्युतम केशवं कृष्ण दामोदरं, राम नारायणं जानकी वल्लभं ||
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श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम् |
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम ||
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम |
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम ||
भजु दीन बंधू दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम |
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम ||
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारू अंग विभुषणं |
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर - धुषणं ||
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम |
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम ||
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राधे कृष्ण की ज्योति अलौकिक तीनो लोक में छाये रही है
भक्ति विवश एक प्रेम पुजारिन फिर भी दीप जलाये रही है
कृष्ण को गोकुल से राधे को ..
कृष्ण को गोकुल से राधे को बरसाने से बुलाये रही है
दोनों करो कृपा कर जोगन आरती गाये रही है -२
भोर भये से साँझ ढले तक सेवा का नित नियम हमारो
स्नान कराये वो, वस्त्र उडाये वो, भोग लगाये वो लागत प्यारो
कब से निहारत आपकी ओर ..
कब से निहारत आपको ओर की आप हमारी ओर निहारो
राधे कृष्ण हमारे धाम को जानि वृन्दावन धाम पधारो -2
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चरण वंदना चरण वंदना
प्रभु श्रीराम की चरण वंदना -2
अयोध्या पति राम की चरण वंदना
प्रभु श्रीराम की चरण वंदना -2

शिव के धनुष को जिसने तोड़ कर दिखाया
राजा जनक जी का मान बढ़ाया
सीता और राम की चरण वंदना
चरण वंदना चरण वंदना
प्रभु श्रीराम की चरण वंदना -2

मात पिता की आज्ञा मान के दिखाया
चौदह बरस का वनवाश बिताया
राम जी के नाम की चरण वंदना
प्रभु श्रीराम की चरण वंदना -2
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श्री विष्णु षोडशनाम स्तोत्र

शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये॥१॥
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥
औषधे चिंतये विष्णुम(1),भोजने च जनार्धनम(2),
शयने पद्मनाभं च(3), विवाहे च प्रजापतिम(4),
युद्धे चक्रधरम देवं(5), प्रवासे च त्रिविक्रमं(6),
नारायणं तनु त्यागे(7), श्रीधरं प्रिय संगमे(8),
दुःस्वप्ने स्मर गोविन्दम(9),संकटे मधुसूधनम(10),
कानने नारासिम्हम च(11),पावके जलाशयिनाम(12),
जलमध्ये वराहम च(13), पर्वते रघु नन्दनं(14),
गमने वामनं चैव(15), सर्व कार्येशु माधवं(16).

षोडशैतानी नमानी प्रातरुत्थाय यह पठेत
सर्वपापा विर्निमुक्तो विष्णुलोके महीयते

Wednesday, December 2, 2015

|| श्रीमद् भगवद्गीता ||


कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः । स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत् ॥ ४.१८ ॥

उच्चारण : कर्माणि अकर्मा यः पश्येत् अकर्मणि च कर्मा यः | सः बुद्धिमान मनुष्येषु सह युक्तः कृत्स्नकर्मकृत || ४.१८ ||

Karmani akarma yah pashyet akarmani cha karma yah | sah buddhiman manushyeshu sah yuktah krutsnakarmakrut || 4.18 ||

अर्थात : जो मनुष्य कर्ममें अकर्म देखता है और जो अकर्ममें कर्म देखता है, वह मनुष्योंमें बुद्धिमान है और वह योगी सर्व कर्मोंको करनेवाला है ।


श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः। ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।4.39।।

उच्चारण: श्रद्धावान् लभते ज्ञानम् तत्परः संयतेन्द्रियः। ज्ञानं लब्ध्वा परं शान्तिम् अचिरेण अधिगच्छति।।

अर्थात : श्रद्धावान् तत्पर और जितेन्द्रिय पुरुष ज्ञान प्राप्त करता है। ज्ञान को प्राप्त करके शीघ्र ही वह परम शान्ति को प्राप्त होता है।।4.39।।


http://www.bhagavad-gita.org/Gita/verse-07-03.html
http://www.bhagwadgita.jagatgururampalji.org/bhagavad_gita_adhyay_7.php
http://www.gitasupersite.iitk.ac.in/srimad?language=dv&field_chapter_value=7&field_nsutra_value=3&show_mool=1&enable_autoplay=1&htrskd=1&httyn=1&htshg=1&scsh=1&choose=1

http://www.sacred-texts.com/hin/mbs/mbs06028.htm
http://hindi.webdunia.com/religion/religion/hindu/geeta/Chapter7_1-7.htm
http://thedivinesoul.blogspot.com/2008/03/blog-post_13.html