*गीत::*
हे जगत पिता जगदीश्वर
यह गुण अपने मे पाऊं
हिंदू के हित में जन्मु
हिंदू के हित मर जाऊँ
चाहे राणा सम मुझको
वन वन में भटकना
चाहे तज भोग रसीले
सुखी ही घास खिलाना
पर हिंदू का तन देना
मै भले नरक में जाऊं
हिंदू के हित में जन्मु
हिंदू के हित मर जाऊँ
चाहे गुरु अर्जुन के सम
अंग अंग नुचवाना
चाहे गुरु बंदा के सम
सिर आरे से चिरवाना
चाहे गुरु पुत्रों के सम
दीवालों में चुनवाना
चाहे कर वीर हकीकत
नित सूली पर लटकाना
पर नाथ अहिन्दू बनकर
मै नही जगत में आऊं
हिंद के हित में जन्मु
हिंदू के हित मर जाऊँ
अरुण गगन पर महा प्रगति का अब फिर मंगल गान उठा।
करवट बदली अंगड़ाई ली सोया हिन्दुस्थान उठा।।
सौरभ से भर गई दिशायें अब धरती मुसकाती है,
कण-कण गाता गीत गगन के सीमा अब दुहराती है।
मंगल-गान सुनाता सागर गीत दिशायें गाती हैं,
मुक्त पवन पर राष्ट्र-पताका लहर-लहर लहराती है।
तरूण रक्त फिर लगा खौलने हृदयों मे तूफान उठा,
करवट बदली अंगड़ाई ली सोया हिन्दुस्थान उठा।।1।।
रामेश्वर का जल अंजलि में काश्मीर की सुन्दरता,
कामरूप की धूल द्वारका की पावन प्यारी ममता।
बंग-देश की भक्ति-भावना महाराष्ट्र की तन्मयता,
शौर्य पंचनद का औ-राजस्थानी विश्व-विजय-क्षमता।
केन्द्रित कर निज प्रखर तेज को फिर भारत बलवान उठा,
करवट बदली अंगड़ाई ली सोया हिन्दुस्थान उठा।।2।।
बिन्दु-बिन्दु जल मिल कर बनती प्रलयंकर सर की धारा,
कण-कण भू-रज मिल कर करती अंधकारमय जग सारा।
कोटि-कोटि हम उठें उठायें भारतीयता का नारा,
बड़े विश्व के बढ़ते कदमों ने फिर हमको ललकारा।
जगे देश के कण-कण से फिर जन-जन का आह्वान उठा,
करवट बदली अंगड़ाई ली सोया हिन्दुस्थान उठा।।3।।
https://www.youtube.com/watch?v=CbAW4GmkeUQ
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ध्येय वाक्य :
राणा के उस भीषण प्रण को आज पुनः हम सब दोहराए !
त्यज देंगे सारा सुख वैभव जब तक माँ का कष्ट न जाए !!
क्या होगा माता के कारण अगर राष्ट्र के लिये मरेंगे !!
भूमि शयन घांसों की रोटी खाकर भी सब व्यथा हरेंगे !!
निश्चित होगी विजय सत्य की दुश्मन काँपेंगे थर थर थर !
--महाराणा प्रताप जयंति की हार्दिक शुभकामनायें
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उठा कदम बढ़ा कदम , कदम कदम बढाये जा !
कदम कदम पे दुश्मनो , के धड़ से सर उड़ाए जा !!
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शपथ लेकर पूर्वजों की , आशा हम पूरी करें
मस्त होकर कार्यरत हों घ्येय मय जीवन धरें
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अम्बर हिले धरा डोले , पर हम अपना पथ न छोडें
सागर सीमा भूले , पर हम अपना ध्येय न छोडें |
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ऊंच नीच भेद भूल , एक हम सभी रहे
सहज बंधुभाव हो , राग द्वेष न रहे |
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संघ कार्य आसान नहीं है , लेकिन डरना काम नहीं है
निशदिन कष्ट उठाना है , कार्य पूर्ति अब करनी है|
ये उथल-पुथल उत्ताल लहर पथ से न डिगाने पायेगी।
पतवार चलाते जायेंगे मंजिल आयेगी-आयेगी॥
लहरों की गिनती क्या करना कायर करते हैं करने दो।
तूफानों से सहमे जो हैं पल-पल मरते हैं मरने दो॥
चिर पावन नूतन बीज लिये मनु की नौका तिर जायेगी॥
पतवार चलाते जायेंगे ॥
अनगिन संकट जो झेल बढ़ा वह यान हमारा अनुपम है
नायक पर है विश्वास अटल दिल में बाहों में दमखम है
यह रैन-अंधेरी बीतेगी ऊषा जय-मुकुट चढ़ायेगी॥
पतवार चलाते जायेंगे ॥
विध्वंसों का ताण्डव फैला हम टिके सृजन के हेम -शिखर
हम मनु के पुत्र प्रतापी हैं वर्चस्वी धीरोदत्त प्रखर।
असुरों की कपट कुचाल कुटिल श्रध्दा सबको सुलझायेगी॥
पतवार चलाते जायेंगे ॥
इतिहास हमारा संबल है विज्ञान हमारा है भुजबल
गत वैभव का आदर्श आज कर देगा भावी भी उज्ज्वल।
नूतन निर्मिति की तृप्ति अमर फिर गीत विजय की गायेगी।
पतवार चलाते जायेंगे ॥
इस धरती में शक हूण मिटे गजनी गौरी अरु अब्दाली
पश्चिम की लहरें लौट गई ले ले अपनी झोली खाली।
पूँजीशाही बर्बरत सब ये धरती उदर समायेगी।
पतवार चलाते जायेंगे मंजिल आयेगी -आयेगी।
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कुटुंब में सब मिलकर रहना
हमारे पुरखों का कहना
सुखी परिवार होता है
सुखी संसार होता है
हमारी रीत है निराली
ऋषि मुनियों ने थी डाली
नहीं होता कोई खाली
सभी को काम होता है
कुटुंब में सब मिलकर रहना
हमारे पुरखों का कहना
सभी दुःख बाँट लेते है
सुखों में मिलजुल गाते है
ख़ुशी ख़ुशी घर में रहते है
सभी में प्यार होता है
कुटुंब में सब मिलकर रहना
हमारे पुरखों का कहना
मानते एक दूजे की बात
नहीं होता है कभी विवाद
करें आपस में सब संवाद
सभी का मान होता है
कुटुंब में सब मिलकर रहना
हमारे पुरखों का कहना
बड़ों से सीख लेते है
उन्ही से ज्ञान पाते है
तभी संस्कार आते है
जो सब के साथ रहता है
कुटुंब में सब मिलकर रहना
हमारे पुरखों का कहना
सुखी परिवार होता है
सुखी संसार होता है
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युगों से बहती आई हिन्दु संस्कृति धारा,
इससे ही एकात्म हुआ है सारा राष्ट्र हमारा !!
वेदों की पावन धरती यह, देवों ने अवतार लिये,
राम, कृष्ण, गौतम, नानक ने अमृत्सम सुविचार दिए,
एक सूत्र में पिरो सभी को … 2,
दिया स्नेह सहारा ! इससे ही एकात्म …..
वनवासी, गिरिवासी वंचित, बन्धु सहोदर हैं अपने,
सबको लेकर साथ चलें हम, पूर्ण करें सबके सपने,
समरस जीवन से टूटेगी …2, भेदभाव की कारा ! इससे ही एकात्म …..
नारी का सम्मान यहाँ की, गौरवशाली परम्परा,
मातृशक्ति के संस्कारों से, पोषित है यह पुण्य धरा,
त्याग प्रेम के आदर्शों ने …2,
भारत भाग्य संवारा ! इससे ही एकात्म …..
युगों-युगों से बहती आई हिन्दु संस्कृति धारा
इससे ही एकात्म हुआ है सारा राष्ट्र हमारा !!
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नमन करें इस मातृभूमि को, नमन करें आकाश को
बलिदानों की पृष्ठभूमि पर, निर्मित इस इतिहास को ॥धृ॥
इस धरती का कण-कण पावन, यह धरती अवतारों की है ।
ऋषि-मुनियों से वन्दित धरती, धरती वेद-पुराणों की है ।
मौर्यगुप्त सम्राटों की यह, विक्रम के अभियानों की है ।
महावीर गौतम की धरती, धरती चैत्य विहारों की है ।
नमन करें झेलम के तट को, हिममंडित कैलाश को ॥१॥
याद करें सन सत्तावन की, उस तलवार पुरानी को हम ।
रोटी और कमल ने लिख दी, युग की अमिट कहानी को हम ।
माय मेरा रंग दे बसंती चोला, भगतसिंह बलिदानी को हम ।
खून मुझे दो आज़ादी लो, इस सुभाष की वाणी को हम ।
गुरु गोविन्दसिंह की कलियों के उस, अजर अमर बलिदान को ॥२॥
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अनेकता में ऐक्य मंत्र को, जन-जन फिर अपनाता है।
धीरे-धीरे देश हमारा, आगे बढता जाता है।
इस धरती को स्वर्ग बनाया, ॠषियों ने देकर बलिदान॥
उन्हीं के वंशज आज चले फिर, करने को इसका निर्माण।
कर्म पंथ पर आज सभी को गीता ग्यान बुलाता है॥1॥
जाति, प्रान्त और वर्ग भेद के, भ्रम को दूर भगाना है।
भूख, बीमारी और बेकारी, इनको आज मिटाना है।
एक देश का भाव जगा दें, सबकी भारत माता है॥2॥
हमें किसी से बैर नहीं है, हमें किसी से भीति नहीं।
सभी से मिलकर काम करेंगे, संगठना की रीति यही।
नील गगन पर भगवा ध्वज यह, लहर लहर लहराता है॥3॥
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कहीं पर्वत झुके भी हैं, कहीं दरिया रुके भी हैं।
नहीं झुकती जवानी है, नहीं रुकती रवानी है।
गुरु गोविंद के बच्चे, उमर में थे अगर कच्चे।
मगर थे सिंह के बच्चे, धरम ईमान के सच्चे।
गरज कर बोल उठे थे यूँ, सिंह मुँह खोल उठे थे यूँ।
नहीं हम झुक नहीं सकते, नहीं हम रुक नहीं सकते।
हमें निज देश प्यारा है, हमें निज धर्म प्यारा है।
पिता दशमेश प्यारा है, श्री गुरु ग्रंथ प्यारा है।
जोरावर जोर से बोला, फतेह सिंह शोर से बोला।
रखो ईंटें भरो गारे, चुनो दीवार हत्यारे।
हमारी सांस बोलेगी, हमारी लाश बोलेगी।
यही दीवार बोलेगी, हजारों बार बोलेगी।
हमारे देश की जय हो, पिता दशमेश की जय हो।
हमारे धर्म की जय हो, श्री गुरु ग्रंथ की जय हो।
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हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे
संगठन का भाव भरते जा रहे
हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे
यह सनातन राष्ट्र मंदिर है यहाँ
वेद की पावन ऋचाएं गूंजती
प्रकृति वरदान पाकर शक्तियां
देव निर्मित इस धरा को पूजती
हम स्वयं देवत्व गढ़ते जा रहे
हम विजय की ओर बढते जा रहे
राष्ट्र की जो चेतना सोई पड़ी
हम उसे फिर से जगाने आ गए
परम पौरुष की पताका हाथ ले
क्रांति के नव गीत गाने आ गये
विघ्न बाधा शैल चढ़ते जा रहे
हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे
हम युवाओं का करें आह्वान फिर
शक्ति का नव ज्वार पैदा हो सके
राष्ट्र रक्षा का महाअभियान लें
संगठन भी तीव्रगामी हो सके
लक्ष्य का संधान करते रहे
हम विजय की ओर बढ़ते का रहे
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सत्य का आधार लेकर, हम हिमालय से खड़े हैं।
शील में, औदार्य में हम, विश्व में सबसे बड़े हैं।।धृ।।
संघ की शाखा निरंतर, शक्ती की आराधना हैं।
राष्ट्र की नवचेतना के, जागरण की साधना हैं।
ध्येय पथ पर अडिग होकर, पैर अंगद से गडेे है।।१।।
सत्य का आधार लेकर...
विश्व में फहराएंगे हम, देव संस्कृती की पताका।
जगत को संदेश देंगे, हिन्दुओ की एकता का।
दूर कर अवरोध सारे, ध्येय पथ पर हम बढे हैं।।२।।
सत्य का आधार लेकर...
जीत ले विश्वास सब का, कर्म कौशल के सहारे।
बुद्धी बल से नष्ट कर दे, शत्रु के, षडयंत्र सारे।
संगठन का मार्ग दुर्गम, नियम संयम से चले हैं।।३।।
सत्य का आधार लेकर..
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जीवन में कुछ करना है तो मन को मारे मत बैठो
जीवन में कुछ करना है तो मन को मारे मत बैठो
आगे आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो ।
तेज दौड़ने वाला खरहा दो पग चलकर ठहर गया
धीरे धीरे चलकर कछुआ देखो बाजी मार गया
चलो कदम से कदम मिलाकर दूर किनारे मत बैठो
आगे आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो
चलने वाला मंजिल पाता बैठा पीछे रहता है
ठहरा पानी सड़ने लगता बहता निर्मल होता है
पाव दिए चलने की खातिर पाव पसारे मत बैठो
आगे आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो
धरती चलती तारे चलते चाद रात भर चलता है
किरणों का उपहार बाटने सूरज रोज निकलता है
हवा चले तो महक बिखेरे तुम भी प्यारे मत बैठो
आगे आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो
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jeevan-mein-kuch-karna-hai-to
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हिन्दु हिन्दु एक रहे भेद भाव को नही सहे
संघर्षो से दुखी जगत को मानवता की शिक्षा दे ॥धृ॥
एक ब्रह्म कुछ और नही हरिहर दुर्गा मात वही
देव देविया रूप उसीका देश काल अनुसार सही
सब पन्थों का मान करे सब ग्रंथो से ग्यान गहे
सदगुरुओं की सीख समझकर जीवन को जीना सीखे ॥१॥
जो भाई भटके बिछडे हाथ पकड ले साथ चले
भोजन कपडा घर की सुविधा शिक्षा सबको सुलभ रहे
उंच-नीच लवलेश न हो छुवा-छूत अवशेष न हो
एक लहू सब की नस-नस मे अपनेपन की रीत गहे ॥२॥
धर्म प्रेम अमृत पीये गीता गंगा गौ पूजे
वेद विहीत जीवन रचना हो राम कृष्ण शिव भक्ति करे
धर्म सनातन अनुगामी बुद्धम्-शरणम्-गच्छामि
अर्हंतोंको नमन करे नित वाहे गुरु अकाल कहे ॥३॥
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शिव तो जागे किन्तु देश का शक्ती जागरण शेष है ।
देव जुटे यत्नोमें लेकिन असुर निवारण शेष है
वक्ष विदारण शेष है ॥धृ॥
संघे शक्ती कलौ युगे यह जन मन का विश्वास है।
पौरुष ही आधार सत्य का इसका भी आभास है।
सामुहिक आर्यत्व शक्ती का आयुध धारण शेष है ॥
यमुना दूषित गंगा मैली रामजन्मभू खिन्न है ।
रघुकुल रीती भुला-ई हमने भा-ई भा-ई भिन्न है ।
गोरा शासन गया दास्य का जड का कारण शेष है ॥
अबला अब भी नारी बेबस अर्जुन भ्रम मे ग्रस्त है
हुये मुग्ध अभिमन्यु व्युह मे धर्म होट मे मस्त है
द्रुपद सुता का चीर उतरता संकट तारण शेष है ॥
इस धरती पर हिन्दु शक्ती को फिर चेतन होना होगा
दिव्यायुध आभूषित होकर असमंजस खोना होगा
शंखनाद हो चुका युद्ध का जय उच्चारण शेष है ॥
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"जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है"।
जननी-जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ।
इसके वास्ते ये तन है मन है और प्राण है ॥
जननी-जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ॥ध्रु॥
इसके कण-कण पे लिखा राम-कृष्ण नाम है ।
हुतात्माओं के रुधिर से भूमि शस्य-श्याम है ।
धर्म का ये धाम है, सदा इसे प्रणाम है ।
स्वतंत्र है यह धरा, स्वतंत्र आसमान है ॥१॥
इसके आन पे अगर जो बात कोई आ पड़े ।
इसके सामने जो ज़ुल्म के पहाड़ हों खड़े ।
शत्रु सब जहान हो, विरुद्ध आसमान हो ।
मुकाबला करेंगे जब तक जान में ये जान है ॥२॥
इसकी गोद में हज़ारों गंगा-यमुना झूमती ।
इसके पर्वतों की चोटियाँ गगन को चूमती ।
भूमि ये महान है, निराली इसकी शान है ।
इसके जय-पताके पे लिखा विजय-निशान ॥३॥
"जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है"।
जननी-जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ।
इसके वास्ते ये तन है मन है और प्राण है ॥
जननी-जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ॥ध्रु॥
!! भारत माता की जय !!
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!! चन्दन है इस देश की माटी !!
चन्दन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है ।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है ॥
हर शरीर मन्दिर सा पावन, हर मानव उपकारी है ।
जहाँ सिंह बन गये खिलौने, गाय जहाँ मा प्यारी है ।
जहाँ सवेरा शंख बजाता, लोरी गाती शाम है ।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है ॥
जहाँ कर्म से भाग्य बदलते, श्रम निष्ठा कल्याणी है ।
त्याग और तप की गाथाएँ, गाती कवि की वाणी है ॥
ज्ञान जहाँ का गंगा जल सा, निर्मल है अविराम है ।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है ॥
इसके सैनिक समर भूमि में, गाया करते गीता हैं ।
जहाँ खेत में हल के नीचे, खेला करती सीता हैं ।
जीवन का आदर्श यहाँ पर, परमेश्वर का धाम है ।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है ॥
चन्दन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है ।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है ॥
स्व. श्री चंद्रकांत भारद्वाज 'ध्रुव'
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गीत
संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो ।
भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किए चलो ॥
संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो ।
भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किए चलो ॥
युग के साथ मिल के सब कदम बढ़ाना सीख लो ।
एकता के स्वर में गीत गुनगुनाना सीख लो ॥
भूल कर भी मुख में जाति-पंथ की न बात हो ।
भाषा-प्रांत के लिए कभी ना रक्तपात हो ॥
फूट का भरा घड़ा है फोड़ कर बढ़े चलो ।
आ रही है आज चारों ओर से यही पुकार ॥
हम करेंगे त्याग मातृभूमि के लिए अपार ।
कष्ट जो मिलेंगे मुस्कुरा के सब सहेंगे हम ॥
देश के लिए सदा जिएंगे और मरेंगे हम ।
देश का ही भाग्य अपना भाग्य है ये सोच लो ॥
संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो ।
भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किये चलो ॥
|| वंदे मातरम || || जय हिंद ||
======================
गीत
हे जन्मभूमि भारत! हे कर्मभूमि भारत!
हे वन्दनीय भारत! अभिनंदनीय भारत!
जीवन सुमन चढ़ा कर हम साधना करेंगे
तेरी जनम जनम भर हम साधना करेंगे
हम अर्चना करेंगे, हम वंदना करेंगे |
जिसका मुकुट हिमालय यूँ जगमगा रहा है,
सागर जिसे रतन की अंजलि चढ़ा रहा है,
वह देश है हमारा ललकार कर कहेंगे;
तेरी जनम जनम भर हम साधना करेंगे |
हम अर्चना करेंगे, हम वंदना करेंगे |
महिमा महान तू है, गौरव निधान तू है,
तू प्राण है हमारी, जननी सामान तू है |
तेरे लिए जियेंगे, तेरे लिए मरेंगे |
तेरी जनम जनम भर हम साधना करेंगे |
हम अर्चना करेंगे हम वंदना करेंगे |
हे जन्मभूमि भारत! हे कर्मभूमि भारत!
हे वन्दनीय भारत! अभिनंदनीय भारत!
हे जगत पिता जगदीश्वर
यह गुण अपने मे पाऊं
हिंदू के हित में जन्मु
हिंदू के हित मर जाऊँ
चाहे राणा सम मुझको
वन वन में भटकना
चाहे तज भोग रसीले
सुखी ही घास खिलाना
पर हिंदू का तन देना
मै भले नरक में जाऊं
हिंदू के हित में जन्मु
हिंदू के हित मर जाऊँ
चाहे गुरु अर्जुन के सम
अंग अंग नुचवाना
चाहे गुरु बंदा के सम
सिर आरे से चिरवाना
चाहे गुरु पुत्रों के सम
दीवालों में चुनवाना
चाहे कर वीर हकीकत
नित सूली पर लटकाना
पर नाथ अहिन्दू बनकर
मै नही जगत में आऊं
हिंद के हित में जन्मु
हिंदू के हित मर जाऊँ
अरुण गगन पर महा प्रगति का अब फिर मंगल गान उठा।
करवट बदली अंगड़ाई ली सोया हिन्दुस्थान उठा।।
सौरभ से भर गई दिशायें अब धरती मुसकाती है,
कण-कण गाता गीत गगन के सीमा अब दुहराती है।
मंगल-गान सुनाता सागर गीत दिशायें गाती हैं,
मुक्त पवन पर राष्ट्र-पताका लहर-लहर लहराती है।
तरूण रक्त फिर लगा खौलने हृदयों मे तूफान उठा,
करवट बदली अंगड़ाई ली सोया हिन्दुस्थान उठा।।1।।
रामेश्वर का जल अंजलि में काश्मीर की सुन्दरता,
कामरूप की धूल द्वारका की पावन प्यारी ममता।
बंग-देश की भक्ति-भावना महाराष्ट्र की तन्मयता,
शौर्य पंचनद का औ-राजस्थानी विश्व-विजय-क्षमता।
केन्द्रित कर निज प्रखर तेज को फिर भारत बलवान उठा,
करवट बदली अंगड़ाई ली सोया हिन्दुस्थान उठा।।2।।
बिन्दु-बिन्दु जल मिल कर बनती प्रलयंकर सर की धारा,
कण-कण भू-रज मिल कर करती अंधकारमय जग सारा।
कोटि-कोटि हम उठें उठायें भारतीयता का नारा,
बड़े विश्व के बढ़ते कदमों ने फिर हमको ललकारा।
जगे देश के कण-कण से फिर जन-जन का आह्वान उठा,
करवट बदली अंगड़ाई ली सोया हिन्दुस्थान उठा।।3।।
https://www.youtube.com/watch?v=CbAW4GmkeUQ
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ध्येय वाक्य :
राणा के उस भीषण प्रण को आज पुनः हम सब दोहराए !
त्यज देंगे सारा सुख वैभव जब तक माँ का कष्ट न जाए !!
क्या होगा माता के कारण अगर राष्ट्र के लिये मरेंगे !!
भूमि शयन घांसों की रोटी खाकर भी सब व्यथा हरेंगे !!
निश्चित होगी विजय सत्य की दुश्मन काँपेंगे थर थर थर !
--महाराणा प्रताप जयंति की हार्दिक शुभकामनायें
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उठा कदम बढ़ा कदम , कदम कदम बढाये जा !
कदम कदम पे दुश्मनो , के धड़ से सर उड़ाए जा !!
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शपथ लेकर पूर्वजों की , आशा हम पूरी करें
मस्त होकर कार्यरत हों घ्येय मय जीवन धरें
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अम्बर हिले धरा डोले , पर हम अपना पथ न छोडें
सागर सीमा भूले , पर हम अपना ध्येय न छोडें |
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ऊंच नीच भेद भूल , एक हम सभी रहे
सहज बंधुभाव हो , राग द्वेष न रहे |
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संघ कार्य आसान नहीं है , लेकिन डरना काम नहीं है
निशदिन कष्ट उठाना है , कार्य पूर्ति अब करनी है|
ये उथल-पुथल उत्ताल लहर पथ से न डिगाने पायेगी।
पतवार चलाते जायेंगे मंजिल आयेगी-आयेगी॥
लहरों की गिनती क्या करना कायर करते हैं करने दो।
तूफानों से सहमे जो हैं पल-पल मरते हैं मरने दो॥
चिर पावन नूतन बीज लिये मनु की नौका तिर जायेगी॥
पतवार चलाते जायेंगे ॥
अनगिन संकट जो झेल बढ़ा वह यान हमारा अनुपम है
नायक पर है विश्वास अटल दिल में बाहों में दमखम है
यह रैन-अंधेरी बीतेगी ऊषा जय-मुकुट चढ़ायेगी॥
पतवार चलाते जायेंगे ॥
विध्वंसों का ताण्डव फैला हम टिके सृजन के हेम -शिखर
हम मनु के पुत्र प्रतापी हैं वर्चस्वी धीरोदत्त प्रखर।
असुरों की कपट कुचाल कुटिल श्रध्दा सबको सुलझायेगी॥
पतवार चलाते जायेंगे ॥
इतिहास हमारा संबल है विज्ञान हमारा है भुजबल
गत वैभव का आदर्श आज कर देगा भावी भी उज्ज्वल।
नूतन निर्मिति की तृप्ति अमर फिर गीत विजय की गायेगी।
पतवार चलाते जायेंगे ॥
इस धरती में शक हूण मिटे गजनी गौरी अरु अब्दाली
पश्चिम की लहरें लौट गई ले ले अपनी झोली खाली।
पूँजीशाही बर्बरत सब ये धरती उदर समायेगी।
पतवार चलाते जायेंगे मंजिल आयेगी -आयेगी।
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कुटुंब में सब मिलकर रहना
हमारे पुरखों का कहना
सुखी परिवार होता है
सुखी संसार होता है
हमारी रीत है निराली
ऋषि मुनियों ने थी डाली
नहीं होता कोई खाली
सभी को काम होता है
कुटुंब में सब मिलकर रहना
हमारे पुरखों का कहना
सभी दुःख बाँट लेते है
सुखों में मिलजुल गाते है
ख़ुशी ख़ुशी घर में रहते है
सभी में प्यार होता है
कुटुंब में सब मिलकर रहना
हमारे पुरखों का कहना
मानते एक दूजे की बात
नहीं होता है कभी विवाद
करें आपस में सब संवाद
सभी का मान होता है
कुटुंब में सब मिलकर रहना
हमारे पुरखों का कहना
बड़ों से सीख लेते है
उन्ही से ज्ञान पाते है
तभी संस्कार आते है
जो सब के साथ रहता है
कुटुंब में सब मिलकर रहना
हमारे पुरखों का कहना
सुखी परिवार होता है
सुखी संसार होता है
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भारत के नोजवानों भारतीय पुकारती है
भेदभाव छोड़कर साथ - साथ आइए
दांव पे लगी फिर भारतीय की लाज
आज सिंघनाथ कर सोये राष्ट्र को जगाइये
वाणी की विनम्रता दोष बन न जाए कहीं
अपना प्रचंड रूप शत्रु को दिखाइए
एक हाथ में गंगा दूसरे में तिरंगा
लेके फिर वंदे मातरम गीत गाइये
भारत के वासी हम हिन्द के निवासी हम
हमें अपने वतन पर अभिमान है
रानी झांसी महाराणा छत्रसाल हो जहाँ के
ऐसी पुण्य भूमि शस्य श्यामला महान है
काश्मीर से सुदूर कन्याकुमारी तक
भारत का कण कण ईश वरदान है
धर्म जाती भाषा प्रांत हो चाहें अनेक यहाँ
एक धरती हमारी एक आसमान है
--भारत माता की जय
भेदभाव छोड़कर साथ - साथ आइए
दांव पे लगी फिर भारतीय की लाज
आज सिंघनाथ कर सोये राष्ट्र को जगाइये
वाणी की विनम्रता दोष बन न जाए कहीं
अपना प्रचंड रूप शत्रु को दिखाइए
एक हाथ में गंगा दूसरे में तिरंगा
लेके फिर वंदे मातरम गीत गाइये
भारत के वासी हम हिन्द के निवासी हम
हमें अपने वतन पर अभिमान है
रानी झांसी महाराणा छत्रसाल हो जहाँ के
ऐसी पुण्य भूमि शस्य श्यामला महान है
काश्मीर से सुदूर कन्याकुमारी तक
भारत का कण कण ईश वरदान है
धर्म जाती भाषा प्रांत हो चाहें अनेक यहाँ
एक धरती हमारी एक आसमान है
--भारत माता की जय
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युगों से बहती आई हिन्दु संस्कृति धारा,
इससे ही एकात्म हुआ है सारा राष्ट्र हमारा !!
वेदों की पावन धरती यह, देवों ने अवतार लिये,
राम, कृष्ण, गौतम, नानक ने अमृत्सम सुविचार दिए,
एक सूत्र में पिरो सभी को … 2,
दिया स्नेह सहारा ! इससे ही एकात्म …..
वनवासी, गिरिवासी वंचित, बन्धु सहोदर हैं अपने,
सबको लेकर साथ चलें हम, पूर्ण करें सबके सपने,
समरस जीवन से टूटेगी …2, भेदभाव की कारा ! इससे ही एकात्म …..
नारी का सम्मान यहाँ की, गौरवशाली परम्परा,
मातृशक्ति के संस्कारों से, पोषित है यह पुण्य धरा,
त्याग प्रेम के आदर्शों ने …2,
भारत भाग्य संवारा ! इससे ही एकात्म …..
युगों-युगों से बहती आई हिन्दु संस्कृति धारा
इससे ही एकात्म हुआ है सारा राष्ट्र हमारा !!
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नमन करें इस मातृभूमि को, नमन करें आकाश को
बलिदानों की पृष्ठभूमि पर, निर्मित इस इतिहास को ॥धृ॥
इस धरती का कण-कण पावन, यह धरती अवतारों की है ।
ऋषि-मुनियों से वन्दित धरती, धरती वेद-पुराणों की है ।
मौर्यगुप्त सम्राटों की यह, विक्रम के अभियानों की है ।
महावीर गौतम की धरती, धरती चैत्य विहारों की है ।
नमन करें झेलम के तट को, हिममंडित कैलाश को ॥१॥
याद करें सन सत्तावन की, उस तलवार पुरानी को हम ।
रोटी और कमल ने लिख दी, युग की अमिट कहानी को हम ।
माय मेरा रंग दे बसंती चोला, भगतसिंह बलिदानी को हम ।
खून मुझे दो आज़ादी लो, इस सुभाष की वाणी को हम ।
गुरु गोविन्दसिंह की कलियों के उस, अजर अमर बलिदान को ॥२॥
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अनेकता में ऐक्य मंत्र को, जन-जन फिर अपनाता है।
धीरे-धीरे देश हमारा, आगे बढता जाता है।
इस धरती को स्वर्ग बनाया, ॠषियों ने देकर बलिदान॥
उन्हीं के वंशज आज चले फिर, करने को इसका निर्माण।
कर्म पंथ पर आज सभी को गीता ग्यान बुलाता है॥1॥
जाति, प्रान्त और वर्ग भेद के, भ्रम को दूर भगाना है।
भूख, बीमारी और बेकारी, इनको आज मिटाना है।
एक देश का भाव जगा दें, सबकी भारत माता है॥2॥
हमें किसी से बैर नहीं है, हमें किसी से भीति नहीं।
सभी से मिलकर काम करेंगे, संगठना की रीति यही।
नील गगन पर भगवा ध्वज यह, लहर लहर लहराता है॥3॥
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कहीं पर्वत झुके भी हैं, कहीं दरिया रुके भी हैं।
नहीं झुकती जवानी है, नहीं रुकती रवानी है।
गुरु गोविंद के बच्चे, उमर में थे अगर कच्चे।
मगर थे सिंह के बच्चे, धरम ईमान के सच्चे।
गरज कर बोल उठे थे यूँ, सिंह मुँह खोल उठे थे यूँ।
नहीं हम झुक नहीं सकते, नहीं हम रुक नहीं सकते।
हमें निज देश प्यारा है, हमें निज धर्म प्यारा है।
पिता दशमेश प्यारा है, श्री गुरु ग्रंथ प्यारा है।
जोरावर जोर से बोला, फतेह सिंह शोर से बोला।
रखो ईंटें भरो गारे, चुनो दीवार हत्यारे।
हमारी सांस बोलेगी, हमारी लाश बोलेगी।
यही दीवार बोलेगी, हजारों बार बोलेगी।
हमारे देश की जय हो, पिता दशमेश की जय हो।
हमारे धर्म की जय हो, श्री गुरु ग्रंथ की जय हो।
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हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे
संगठन का भाव भरते जा रहे
हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे
यह सनातन राष्ट्र मंदिर है यहाँ
वेद की पावन ऋचाएं गूंजती
प्रकृति वरदान पाकर शक्तियां
देव निर्मित इस धरा को पूजती
हम स्वयं देवत्व गढ़ते जा रहे
हम विजय की ओर बढते जा रहे
राष्ट्र की जो चेतना सोई पड़ी
हम उसे फिर से जगाने आ गए
परम पौरुष की पताका हाथ ले
क्रांति के नव गीत गाने आ गये
विघ्न बाधा शैल चढ़ते जा रहे
हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे
हम युवाओं का करें आह्वान फिर
शक्ति का नव ज्वार पैदा हो सके
राष्ट्र रक्षा का महाअभियान लें
संगठन भी तीव्रगामी हो सके
लक्ष्य का संधान करते रहे
हम विजय की ओर बढ़ते का रहे
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सत्य का आधार लेकर, हम हिमालय से खड़े हैं।
शील में, औदार्य में हम, विश्व में सबसे बड़े हैं।।धृ।।
संघ की शाखा निरंतर, शक्ती की आराधना हैं।
राष्ट्र की नवचेतना के, जागरण की साधना हैं।
ध्येय पथ पर अडिग होकर, पैर अंगद से गडेे है।।१।।
सत्य का आधार लेकर...
विश्व में फहराएंगे हम, देव संस्कृती की पताका।
जगत को संदेश देंगे, हिन्दुओ की एकता का।
दूर कर अवरोध सारे, ध्येय पथ पर हम बढे हैं।।२।।
सत्य का आधार लेकर...
जीत ले विश्वास सब का, कर्म कौशल के सहारे।
बुद्धी बल से नष्ट कर दे, शत्रु के, षडयंत्र सारे।
संगठन का मार्ग दुर्गम, नियम संयम से चले हैं।।३।।
सत्य का आधार लेकर..
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जीवन में कुछ करना है तो मन को मारे मत बैठो
जीवन में कुछ करना है तो मन को मारे मत बैठो
आगे आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो ।
तेज दौड़ने वाला खरहा दो पग चलकर ठहर गया
धीरे धीरे चलकर कछुआ देखो बाजी मार गया
चलो कदम से कदम मिलाकर दूर किनारे मत बैठो
आगे आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो
चलने वाला मंजिल पाता बैठा पीछे रहता है
ठहरा पानी सड़ने लगता बहता निर्मल होता है
पाव दिए चलने की खातिर पाव पसारे मत बैठो
आगे आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो
धरती चलती तारे चलते चाद रात भर चलता है
किरणों का उपहार बाटने सूरज रोज निकलता है
हवा चले तो महक बिखेरे तुम भी प्यारे मत बैठो
आगे आगे बढ़ना है तो हिम्मत हारे मत बैठो
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हिन्दु हिन्दु एक रहे भेद भाव को नही सहे
संघर्षो से दुखी जगत को मानवता की शिक्षा दे ॥धृ॥
एक ब्रह्म कुछ और नही हरिहर दुर्गा मात वही
देव देविया रूप उसीका देश काल अनुसार सही
सब पन्थों का मान करे सब ग्रंथो से ग्यान गहे
सदगुरुओं की सीख समझकर जीवन को जीना सीखे ॥१॥
जो भाई भटके बिछडे हाथ पकड ले साथ चले
भोजन कपडा घर की सुविधा शिक्षा सबको सुलभ रहे
उंच-नीच लवलेश न हो छुवा-छूत अवशेष न हो
एक लहू सब की नस-नस मे अपनेपन की रीत गहे ॥२॥
धर्म प्रेम अमृत पीये गीता गंगा गौ पूजे
वेद विहीत जीवन रचना हो राम कृष्ण शिव भक्ति करे
धर्म सनातन अनुगामी बुद्धम्-शरणम्-गच्छामि
अर्हंतोंको नमन करे नित वाहे गुरु अकाल कहे ॥३॥
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शिव तो जागे किन्तु देश का शक्ती जागरण शेष है ।
देव जुटे यत्नोमें लेकिन असुर निवारण शेष है
वक्ष विदारण शेष है ॥धृ॥
संघे शक्ती कलौ युगे यह जन मन का विश्वास है।
पौरुष ही आधार सत्य का इसका भी आभास है।
सामुहिक आर्यत्व शक्ती का आयुध धारण शेष है ॥
यमुना दूषित गंगा मैली रामजन्मभू खिन्न है ।
रघुकुल रीती भुला-ई हमने भा-ई भा-ई भिन्न है ।
गोरा शासन गया दास्य का जड का कारण शेष है ॥
अबला अब भी नारी बेबस अर्जुन भ्रम मे ग्रस्त है
हुये मुग्ध अभिमन्यु व्युह मे धर्म होट मे मस्त है
द्रुपद सुता का चीर उतरता संकट तारण शेष है ॥
इस धरती पर हिन्दु शक्ती को फिर चेतन होना होगा
दिव्यायुध आभूषित होकर असमंजस खोना होगा
शंखनाद हो चुका युद्ध का जय उच्चारण शेष है ॥
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"जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है"।
जननी-जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ।
इसके वास्ते ये तन है मन है और प्राण है ॥
जननी-जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ॥ध्रु॥
इसके कण-कण पे लिखा राम-कृष्ण नाम है ।
हुतात्माओं के रुधिर से भूमि शस्य-श्याम है ।
धर्म का ये धाम है, सदा इसे प्रणाम है ।
स्वतंत्र है यह धरा, स्वतंत्र आसमान है ॥१॥
इसके आन पे अगर जो बात कोई आ पड़े ।
इसके सामने जो ज़ुल्म के पहाड़ हों खड़े ।
शत्रु सब जहान हो, विरुद्ध आसमान हो ।
मुकाबला करेंगे जब तक जान में ये जान है ॥२॥
इसकी गोद में हज़ारों गंगा-यमुना झूमती ।
इसके पर्वतों की चोटियाँ गगन को चूमती ।
भूमि ये महान है, निराली इसकी शान है ।
इसके जय-पताके पे लिखा विजय-निशान ॥३॥
"जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है"।
जननी-जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ।
इसके वास्ते ये तन है मन है और प्राण है ॥
जननी-जन्मभूमि स्वर्ग से महान है ॥ध्रु॥
!! भारत माता की जय !!
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!! चन्दन है इस देश की माटी !!
चन्दन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है ।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है ॥
हर शरीर मन्दिर सा पावन, हर मानव उपकारी है ।
जहाँ सिंह बन गये खिलौने, गाय जहाँ मा प्यारी है ।
जहाँ सवेरा शंख बजाता, लोरी गाती शाम है ।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है ॥
जहाँ कर्म से भाग्य बदलते, श्रम निष्ठा कल्याणी है ।
त्याग और तप की गाथाएँ, गाती कवि की वाणी है ॥
ज्ञान जहाँ का गंगा जल सा, निर्मल है अविराम है ।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है ॥
इसके सैनिक समर भूमि में, गाया करते गीता हैं ।
जहाँ खेत में हल के नीचे, खेला करती सीता हैं ।
जीवन का आदर्श यहाँ पर, परमेश्वर का धाम है ।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है ॥
चन्दन है इस देश की माटी, तपोभूमि हर ग्राम है ।
हर बाला देवी की प्रतिमा, बच्चा-बच्चा राम है ॥
स्व. श्री चंद्रकांत भारद्वाज 'ध्रुव'
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गीत
संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो ।
भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किए चलो ॥
संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो ।
भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किए चलो ॥
युग के साथ मिल के सब कदम बढ़ाना सीख लो ।
एकता के स्वर में गीत गुनगुनाना सीख लो ॥
भूल कर भी मुख में जाति-पंथ की न बात हो ।
भाषा-प्रांत के लिए कभी ना रक्तपात हो ॥
फूट का भरा घड़ा है फोड़ कर बढ़े चलो ।
आ रही है आज चारों ओर से यही पुकार ॥
हम करेंगे त्याग मातृभूमि के लिए अपार ।
कष्ट जो मिलेंगे मुस्कुरा के सब सहेंगे हम ॥
देश के लिए सदा जिएंगे और मरेंगे हम ।
देश का ही भाग्य अपना भाग्य है ये सोच लो ॥
संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो ।
भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किये चलो ॥
|| वंदे मातरम || || जय हिंद ||
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गीत
हे जन्मभूमि भारत! हे कर्मभूमि भारत!
हे वन्दनीय भारत! अभिनंदनीय भारत!
जीवन सुमन चढ़ा कर हम साधना करेंगे
तेरी जनम जनम भर हम साधना करेंगे
हम अर्चना करेंगे, हम वंदना करेंगे |
जिसका मुकुट हिमालय यूँ जगमगा रहा है,
सागर जिसे रतन की अंजलि चढ़ा रहा है,
वह देश है हमारा ललकार कर कहेंगे;
तेरी जनम जनम भर हम साधना करेंगे |
हम अर्चना करेंगे, हम वंदना करेंगे |
महिमा महान तू है, गौरव निधान तू है,
तू प्राण है हमारी, जननी सामान तू है |
तेरे लिए जियेंगे, तेरे लिए मरेंगे |
तेरी जनम जनम भर हम साधना करेंगे |
हम अर्चना करेंगे हम वंदना करेंगे |
हे जन्मभूमि भारत! हे कर्मभूमि भारत!
हे वन्दनीय भारत! अभिनंदनीय भारत!
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