Friday, October 14, 2016

*अज्ञान आक्षेप :* क्या शिवलिंग घृणित नहीं है? किसी महिला के निजी अंग (योनि) पर रखे एक पुरुष के निजी अंग की पूजा महिलाओं द्वारा करना और उस पर दूध चढ़ाना! कितना अश्लील है!

*उत्तर:* वास्तव में अश्लीलता तो तुम्हारे मन में है जो हर चीज में अश्लीलता खोजने को उतावला रहता है। खास तौर पर हिंदू प्रतीकों में, सत्य क्या है सुनो

शिव :
शिव का अर्थ है कल्याण। "ॐ नमः शिवाय"- जो सभी का कल्याण करता है, मैं उस परमपिता परमात्मा के समक्ष समर्पण करता हूँ। बिना किसी भेदभाव के, सभी के कल्याण की प्रार्थना करता हूँ।

लिंग:
लिंग का अर्थ है चिन्ह। जैसे स्त्रीलिंग का अर्थ है कोई ऐसी वस्तु जो स्त्रीरूप में कल्पित की जा सके। अब वह एक वास्तविक महिला भी हो सकती है या कोई ऐसी वस्तु जो स्त्री रूप में सोची जा सके। उदाहरण के लिए, नदी, लता आदि। इसी तरह पुल्लिंग उसे कहते हैं जो पुरुष के प्रतीक रूप में माना जा सके, जैसे आदमी, पहाड़, वृक्ष आदि।

शिवलिंग:
इसी प्रकार जो शिव के प्रतीक रूप में माना जा सके, वही शिवलिंग है (अर्थात कुछ ऐसा जिसके प्रति हम सभी के कल्याण की हमारी शुभभावनाओं को जोड़ सकें।)

फिर मंद बुद्धि क्या पूछता *"प्रतीक के रूप में पुरुष जननांग क्यों ?":*

*उत्तर:* वह प्रतीक या चिन्ह क्या हो सकता है? वेदों में अनेक जगह परमपिता परमात्मा को एक ऐसे स्तम्भ के रूप में देखा गया है जो समस्त सात्विक गुणों, शुभ वृत्तियों का आधार है। वही मृत्यु और अमरता, साधारण और महानता के बीच की कड़ी है।
यही कारण है कि हिंदू मंदिरों और हिन्दू स्थापत्य कला में स्तम्भ या खंभे प्रचुर मात्रा में देखे जाते हैं।
जो लोग शिवलिंग में पुरुष का जननांग देखते हैं, उन्हें हर बेलनाकार वस्तु में शायद शिश्न ही दीखता होगा? जैसे खम्भे, बेलन, सरिये, अपनी उंगलियों तक में? यह एक मानसिक विकार ही है।

इसके अतिरिक्त, योग साधना भी अग्नि की लौ पर ध्यान केंद्रित करने का अभ्यास करने को कहती है,
शिवलिंग और कुछ नहीं ऐसा लौकिक स्तंभ ही है जिस पर हम (अग्नि की लौ की तरह) ध्यान केंद्रित कर सकते हैं और हमारी कल्याणकारी भावनाओं को उससे जोड़ सकते हैं। यही कारण है कि शिवलिंग को ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। ज्योति आत्मज्ञान का वह पथ जो अलौकिक दिव्य प्रतिभा की ओर ले जाता है।
(आदित्यवर्णं तमसः परस्तात् - प्रकाश से पूर्ण, अज्ञान अंधकार तम से हीन)

*दूसरा बुद्धिहीन प्रश्न किया:* "पर महिला का निजी अंग (योनि) लिंग के नीचे क्यों होता है?"
*उत्तर:* पुनः ये तुम्हारा मानसिक विकार ही है। योनि का मतलब है घर। मकान नहीं घर। अपने स्थायी पते की तरह। यही कारण है कि जीवों की विभिन्न प्रजातियों को योनि कहा जाता है।

दीपक भी 'लौ' की 'योनि' है। दीपक लौ को जलने के लिए स्थिर आधार प्रदान करता है। उसी प्रकार ब्रह्मांडीय स्तंभ को भी एक ठोस आधार के लिए नींव की जरूरत है। वरना स्तम्भ गिर जाएगा। स्तंभ शक्तिशाली होना चाहिए जो विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी स्थिरता प्रदान करने में सक्षम हो।

शिव लिंग है और शक्ति योनि है। शिव के साथ सदैव शक्ति अर्थात ऊर्जा है।
यही शिव और शक्ति के सम्बन्ध का मूलतत्व है।

हे मंद बुद्धि तुझे थोड़ी और ग्यांन देता हूँ:
वेदों का एक बुनियादी नियम है: यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे, अर्थात जैसा पिंड में घटित होता है वैसा ही ब्रम्हांड में होता है अर्थात शिव-शक्ति का सम्बन्ध दुनिया के प्रत्येक सृजनात्मक व विनाशकारी घटनाओं का आधार है। जब शिव और शक्ति मिलते हैं, तो सृजन होता है। और उनके वियोग से ही विनाश होता है। यही शिव और शक्ति, मित्र और वरुण, अग्नि और सोम, उष्ण और शीत, द्युलोक और पृथ्वी के रूप में परिणत होकर सृजन और प्रलय करते हैं।
यह जीवन के सभी पहलुओं में लागू होता है। वेद ही इस सिद्धांत का स्रोत है।
हम संसार में देखते हैं कि शक्ति स्त्रीरूपी है। नारी स्थिरता और पोषण प्रदान करने वाली है। तुमने अपनी माँ से ही गर्भ में और बाहर भी पोषण पाया था। इसीलिए वैदिक संस्कृति में गौ, गंगा, तुलसी आदि हर पोषण प्रदायक वस्तु को माँ के रूप में देखा जाता है। पुरुष बाहर की ओर उपक्रम करता है क्योंकि वह स्थिर हो जाता है।

 मंद बुद्धि को समझाते हुए फिर से कहा, किसी चीज का केवल इसीलिए अपमान मत करो क्योंकि वह तुम्हारी बुद्धि में नहीं घुस रहा है। क्योंकि छोटी बुद्धि का कोई मनुष्य यदि किसी उच्च सिद्धान्त को न समझ पाए और उसका खंडन करने की इच्छा रखता हो तो पहले वो उस उच्च-सिद्धान्त को अपनी बुद्धि के स्तर तक लाएगा, तभी वो उसपर जीभ हिला पाएगा, यही तुम्हारे जैसे लोगों का हाल है।

जो लोग शिवलिंग पर दूध अर्पित करने को पैसे बर्बादी कहते हैं, वे इसकी महत्ता को कभी नहीं जान सकते।
हिन्दू का मानना ​​है कि धन अनन्त है। धन का लाभ धन इकट्ठा करना नहीं है धर्म करना है। और धर्मपालन द्वारा और धन अर्जित कीजिए।

मंद बुद्धि भाई साहब का तो मुह बन्द कर दिया अब आप सबसे भी निवेदन करता हूँ:
शिवरात्रि मनाइये। नियमित रूप से भगवान शिव की पूजा अर्चना कीजिए। दूध अर्पित कीजिए। और गोशालाओं को दान दीजिए। गायों का संवर्धन करें। ॐ नमः शिवाय का अभिवादन की तरह प्रयोग करें। और भगवान शिव और माँ शक्ति के खिलाफ बोलने वालों के प्रति रूद्र (जो दुष्टों को रुलाता है) बनें।

।।ॐ नमः शिवाय।।



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शरद पूर्णिमा
आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। यूं तो हर माह में पूर्णिमा आती है, लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व उन सभी से कहीं अधिक है। हिंदू धर्म ग्रंथों में भी इस पूर्णिमा को विशेष बताया गया है। इस बार शरद पूर्णिमा 15 अक्टूबर, शनिवार को है। जानिए शरद पूर्णिमा की रात इतनी खास क्यों है, इससे जुड़े विभिन्न पहलू व मनोवैज्ञानिक पक्ष-

चंद्रमा से बरसता है अमृत
शरद पूर्णिमा से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणें विशेष अमृतमयी गुणों से युक्त रहती हैं, जो कई बीमारियों का नाश कर देती हैं। यही कारण है कि शरद पूर्णिमा की रात को लोग अपने घरों की छतों पर खीर रखते हैं, जिससे चंद्रमा की किरणें उस खीर के संपर्क में आती है, इसके बाद उसे खाया जाता है। कुछ स्थानों पर सार्वजनिक रूप से खीर का प्रसाद भी वितरण किया जाता है।

भगवान श्रीकृष्ण ने रचाया था रास
शरद पूर्णिमा से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि इस दिन माता लक्ष्मी रात्रि में यह देखने के लिए घूमती हैं कि कौन जाग रहा है और जो जाग रहा है महालक्ष्मी उसका कल्याण करती हैं तथा जो सो रहा होता है वहां महालक्ष्मी नहीं ठहरतीं। शरद पूर्णिमा को रासलीला की रात भी कहते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को ही भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रास रचाया था।

खीर खाने का है महत्व
शरद पूर्णिमा की रात का अगर मनोवैज्ञानिक पक्ष देखा जाए तो यही वह समय होता है जब मौसम में परिवर्तन की शुरूआत होती है और शीत ऋतु का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा की रात में खीर का सेवन करना इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए क्योंकि इसी से हमें जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होगी।

आरोग्य व पुष्टि देनेवाली खीर
शरद पूनम ( 15 अक्टूबर 2016 शनिवार ) की रात को आप जितना दूध उतना पानी मिलाकर आग पर रखो और खीर बनाने के लिए उसमें यथायोग्य चावल तथा शक्कर या मिश्री डालो | पानी बाष्पीभूत हो जाय, केवल दूध और चावल बचे, बस खीर बन गयी | जो दूध को जलाकर तथा रात को बादाम, पिस्ता आदि डाल के खीर खाते हैं उनको तो बीमारियाँ का सामना करना पड़ता है | उस खीर को महीन सूती कपड़े, चलनी या जाली से अच्छी तरह ढककर चन्द्रमा की किरणों में पुष्ट होने के लिए रात्रि 9 से 12 बजे तक रख दिया | बाद में जब खीर खायें तो पहले उसे देखते हुए 21 बार ‘ॐ नमो नारायणाय |’ जप कर लें तो वह औषधि बन जायेगी | इससे वर्षभर आपकी रोगप्रतिकारक शक्ति की सुरक्षा व प्रसन्नता बनी रहेगी |
इस रात को हजार काम छोडकर कम-से-कम 15 मिनट चन्द्रमा की किरणों का फायदा लेना, ज्यादा लो तो हर्ज नहीं | छत या मैदान में आसन बिछाकर चन्द्रमा को एकटक देखना | अगर मौज पड़े तो आप लेट भी सकते हैं |

जय श्री राम ।।
vidyapati and god shiva story

देवों में देव महादेव की कोई जलती लकड़ी से पिटाई करे ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता लेकिन, यह बात बिल्कुल सच है। बात कुछ 1360 ई. के आस-पास की है। उन दिनों बिहार के विस्फी गांव में एक कवि हुआ करते थे। कवि का नाम विद्यापति था। कवि होने के साथ-साथ विद्यापति भगवान शिव के अनन्य भक्त भी थे। इनकी भक्ति और रचनाओं से प्रसन्न होकर भगवान शिव को इनके घर नौकर बनकर रहने की इच्छा हुई।



भगवान शिव एक दिन एक जाहिल गंवार का वेष बनाकर विद्यापति के घर आ गये। विद्यापति को शिव जी ने अपना नाम उगना बताया। विद्यापति की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी अतः उन्होंने उगना को नौकरी पर रखने से मना कर दिया। लेकिन शिव जी मानने वाले कहां थे। सिर्फ दो वक्त के भोजन पर नौकरी करने के लिए तैयार हो गये। इस पर विद्यापति की पत्नी ने विद्यापति से उगना को नौकरी पर रखने के लिए कहा। पत्नी की बात मानकर विद्यापति ने उगना को नौकरी पर रख लिया।

एक दिन उगना विद्यापति के साथ राजा के दरबार में जा रहे थे। तेज गर्मी के वजह से विद्यापति का गला सूखने लगा। लेकिन आस-पास जल का कोई स्रोत नहीं था। विद्यापति ने उगना से कहा कि कहीं से जल का प्रबंध करो अन्यथा मैं प्यासा ही मर जाऊंगा। भगवान शिव कुछ दूर जाकर अपनी जटा खोलकर एक लोटा गंगा जल भर लाए।

विद्यापति ने जब जल पिया तो उन्हें गंगा जल का स्वाद लगा और वह आश्चर्य चकित हो उठे कि इस वन में जहां कहीं जल का स्रोत तक नहीं दिखता यह जल कहां से आया। वह भी ऐसा जल जिसका स्वाद गंगा जल के जैसा है। कवि विद्यापति उगना पर संदेह हो गया कि यह कोई सामान्य व्यक्ति नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव हैं अतः उगना से उसका वास्तविक परिचय जानने के लिए जिद करने लगे।

जब विद्यापति ने उगना को शिव कहकर उनके चरण पकड़ लिये तब उगना को अपने वास्तविक स्वरूप में आना पड़ा। उगना के स्थान पर स्वयं भगवान शिव प्रकट हो गये। शिव ने विद्यापति से कहा कि मैं तुम्हारे साथ उगना बनकर रहना चाहता हूं लेकिन इस बात को कभी किसी से मेरा वास्तविक परिचय मत बताना।

विद्यापति को बिना मांगे संसार के ईश्वर का सानिध्य मिल चुका था। इन्होंने शिव की शर्त को मान लिया। लेकिन एक दिन विद्यापति की पत्नी सुशीला ने उगना को कोई काम दिया। उगना उस काम को ठीक से नहीं समझा और गलती कर बैठा। सुशीला इससे नाराज हो गयी और चूल्हे से जलती लकड़ी निकालकर लगी शिव जी की पिटाई करने। विद्यापति ने जब यह दृश्य देख तो अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा 'ये साक्षात भगवान शिव हैं, इन्हें जलती लकड़ी से मार रही हो।' फिर क्या था, विद्यापति के मुंह से यह शब्द निकलते ही शिव वहां से अर्न्तध्यान हो गये।

इसके बाद तो विद्यापति पागलों की भांति उगना -उगना कहते हुए वनों में, खेतों में हर जगह उगना बने शिव को ढूंढने लगे। भक्त की ऐसी दशा देखकर शिव को दया आ गयी। भगवान शिव उगना के सामने प्रकट हो गये और कहा कि अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता। उगना रूप में मैं जो तुम्हारे साथ रहा उसके प्रतीक चिन्ह के रूप में अब मैं शिव लिंग के रूप विराजमान रहूंगा। इसके बाद शिव अपने लोक लौट गये और उस स्थान पर शिव लिंग प्रकट हो गया। उगना महादेव का प्रसिद्घ मंदिर वर्तमान में मधुबनी जिला में भवानीपुर गांव में स्थित है।

हर हर महादेव ।।

Thursday, October 13, 2016

सुंदरकांड हरी ॐ शरण द्वारा https://youtu.be/Sr04_12itTE

रामचरितमानस संपूर्ण अर्थ सहित https://youtu.be/XPgnuucr9uM

नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु।

जो सुमिरत भयो भाँग तें तुलसी तुलसीदासु॥26॥

भावार्थ:-कलियुग में राम का नाम कल्पतरु (मन चाहा पदार्थ देने वाला) और कल्याण का निवास (मुक्ति का घर) है, जिसको स्मरण करने से भाँग सा (निकृष्ट) तुलसीदास तुलसी के समान (पवित्र) हो गया॥26॥

Tuesday, October 11, 2016

अमृत वचन
संघ की शाखा खेल खेलने अथवा परेड करने का स्थान मात्र नहीहै अपितु सज्जनो की सुरक्षा का बिन बोले अभिवचन है तरुणों को अनिष्ट व्यसनों से मुक्त रखनेवाला संस्कार पीठ है महिलाओ की निर्भयता व् सभ्य आचरण का आश्वासन है दुष्ट तथा देशद्रोही शक्तिओ पर अपनी धाक स्थापित करनेवाली शक्ति है समाज पर अकस्मात आनेवाली विपत्तियों व् संकटों में त्वरित व् निरपेक्ष सहायता मिलने का आशा केंद्र है और सबसे प्रमुख बात यह है की समाज जीवन के विविध क्षेत्रो में सुयोग्य कार्यकर्ता उपलब्ध कराने हेतु योग्य प्रशिक्षण देने वाला विद्यापीठ है
     प पू   बालासाहेब देवरस



अमृत वचन

अधर्म का उच्छेद करने के लिए संघ रूपी भगवद अवतार जगत में पुनः एक बार हुआ है। सर्वशक्तिमान ईश्वर कभी व्यक्ति के रूप में तो कभी संघ के रूप में प्रकट होते हैं। यह कलियुग है। कलियुग में संघ ही शक्ति है। अतः ईश्वर संघ के रूप में ही जगत में प्रकट होंगे और यह स्वरूप हमारे सामने विद्यमान है।
- प० पू० गुरूजी